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नई दिल्ली, 01 अगस्त (हि.स.)। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि एक बालिग बच्चा भी गुजारा भत्ते का तब तक हकदार है जब तक उसकी पढ़ाई चल रही है और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न बन जाए। जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 26 के तहत एक बालिग बच्चा भी अपनी पढ़ाई पूरी होने और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनने तक गुजारा भत्ता पाने का हकदार है। कोर्ट ने कहा कि धारा 26 का लक्ष्य है कि बच्चों को उनकी शिक्षा उपलब्ध कराए। कोर्ट ने कहा कि कोई बच्चा 18 वर्ष का हो जाए इसका मतलब ये नहीं कि उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है। आज के प्रतियोगी दौर में 18 साल के बाद पायी गई शिक्षा ही किसी बच्चे को बेहतर रोजगार का मौका देती है।
दरअसल पति और पत्नी के बीच चल रहे पारिवारिक विवाद में दोनों ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी और बच्चे को एक लाख 15 हजार रुपये का हर महीने मुआवजा दे। फैमिली कोर्ट ने पति को निर्देश दिया था कि वो अपने बेटे को 26 वर्ष की उम्र तक हर महीने 35 हजार रुपये दे। हाई कोर्ट ने कहा कि पति ने अपनी आमदनी को छिपाया और ऐसे में पत्नी की ओर से हर महीने एक लाख 45 हजार रुपये की मांग करना सही है क्योंकि पत्नी बेरोजगार है। हाई कोर्ट ने पति को एक लाख 45 हजार रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया।
हिन्दुस्थान समाचार / प्रभात मिश्रा / आकाश कुमार राय