प्राकृतिक खेती को लेकर केविके परसौनी ने किसानो को किया प्रशिक्षित
पूर्वी चंपारण,27 जुलाई (हि.स.)। जिले के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको ने प्राकृतिक खेती को लेकर शनिवार को 35 से ज्यादा किसानो को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान रामगढवा प्रखंड के बिरता टोला के किसानो ने जीवामृत बनाने का अनुभव प्राप्त किया
प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले किसान


किसानो को प्रशिक्षण देते कृषि वैज्ञानिक


पूर्वी चंपारण,27 जुलाई (हि.स.)। जिले के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको ने प्राकृतिक खेती को लेकर शनिवार को 35 से ज्यादा किसानो को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान रामगढवा प्रखंड के बिरता टोला के किसानो ने जीवामृत बनाने का अनुभव प्राप्त किया।

मौके पर किसानो को संबोधित करते हुए मृदा विशेषज्ञ डा.आशीष राय ने बताया कि वर्षों से खेती में रसायनिक खाद व कीट-व्याधिनाशकों के प्रयोग से फसल के साथ ही मिट्टी पर्यावरण एवं जल स्त्रोंतो पर विपरीत प्रभाव देखे जा रहे है। इसके अतिरिक्त ये रसायन मानव एवं पशुओं के लघु एवं दीर्घ कालीन स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा कर रही हैं।ऐसे में हमे पौराणिक परंपरागत कृषि पद्धति को अपनाना जरूरी है,रसायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव से कृषि पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरण, जैव विविधता, जल स्त्रोंतों एवं मानव जीवन को बचाया जा सके। इसके लिए प्राकृतिक खेती के तरीके अपना कर अल्पकालीन व दीर्घकालीन लक्ष्य की प्राप्ति संभव है।प्राकृतिक खेती से कृषि से जुड़ी अनेक समस्याओं का समाधान मिल सकता है।

डा.आशीष ने कहा कि प्राकृतिक खेती से अवसर आहार असुरक्षा, किसानों का मानसिक तनाव, कृषि रसायनों, पेस्टीसाईडस एवं उर्वरकों के दुष्प्रभावों से होने वाले स्वास्थ्य विकार, वैश्विक तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदा से मुक्ति पाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती से न्यूनतम लागत से अधिकतम प्राप्ति की जा सकती है।साथ ही इसमें रोजगार सृजन की भी असीम संभावनाएं है, जिससे ग्रामीण युवाओं का पलायन कम हो सकता है। साथ ही पशुधन के अध्यवसाय के समन्वय से पारिस्थितिकी तंत्र सुव्यवस्थित और सुदृढ़ होगा। उन्होने बताया कि पर्यावरण सुरक्षित जैव उत्पाद यथा जीवामृत एवं बीजामृत, गाय के गोबर, मूत्र व अन्य प्राकृतिक पदार्थों से ही तैयार किये जाते हैं।

-कैसे बनाये जीवामृत जीवामृत एक सूक्ष्मजीवाणु उत्प्रेरक निर्मित घोल है जो मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता में वृद्धि करता है। साथ ही इसके छिड़काव से पर्णमंडलीय लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं की भी सक्रियता बढ़ती है। यह मूल रुप से लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता के लिए एक प्राईमर की तरह कार्य करता है जो स्थानीय सूक्ष्मजीवाणुओं की संख्या में भी वृद्धि करता है।

•देशी गाय का ताजा गोबर - 10 किलोग्राम

•देशी गाय का गोमूत्र - 10 लीटर

•गुड़ - 02 किलोग्राम

•चने का बेसन - 02 किलोग्राम

•खेतों की मेड़ों /बड़े वृक्षों की जड़ों की साफ मिट्टी - एक मुट्ठी

•जल - 200 लीटर,10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर, गोमूत्र, गुड़ बेसन, मिट्टी को एक ड्राम में 200 लीटर पानी में अच्छी तरह मिला दें। घोल को फरमेंटेशन के लिए 48 घंटे छाया में रखें।घोल को एक साफ लकड़ी से सुबह और शाम अच्छी तरह मिलाते रहें। इससे तैयार उत्पाद व्यवहार के लिए उपयुक्त है।इस घोल का व्यवहार 15 दिनों के अन्तराल पर 500 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए। इसका छिड़काव सीधे भी कर सकते हैं या सिंचाई जल के माध्यम से भी। फसल की अवस्थाओं के अनुसार इनका छिड़काव 02-10 प्रतिशत सांद्रता के दर से किया जा सकता है। अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए 05-10 दिनों तक इसका व्यवहार कर सकते हैं।जीवामृत मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता में वृद्धि करती है। ये सूक्ष्म जीवाणु मृदा में पोषण तत्वों की उपलब्धता को पौध जड़ क्षेत्र (राईजोस्फेयर) में बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान करती है,प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग राइजोबैक्टीरिया (पी.जी.पी.आर.), सायनो बैक्टीरिया, फास्फेट सालुबीलाईजिंग बैक्टीरिया, माईकोराइजल फंजाई, नाईट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया आदि महत्वपूर्ण सूक्ष्म जीवाणु जीवामृत के घोल में रहते हैंI

हिन्दुस्थान समाचार

हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार / चंदा कुमारी