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कोलकाता, 26 जुलाई (हि.स.)। भारतीय साहित्य का समाज पर गहरा प्रभाव है और यह साहित्य समाज को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह कहना है मशहूर मराठी क्रिटिक आशुतोष आदोनी का। भारत सरकार के सूचना और संस्कृति मंत्रालय, मौलाना अबुल कलाम आजाद इंस्टिट्यूट ऑफ़ एशियन स्टडीज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित संस्था संस्कार भारती की ओर से आयोजित कार्यक्रम में वह मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रहे थे।
आशुतोष अदोनी ने अपने वक्तव्य में बताया कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और यह समाज की तस्वीर को प्रकट करने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि साहित्य एक ऐसा माध्यम है जो समाज के साथ जोड़ कर रखता है और समाज की समस्याओं, उसकी भावनाओं और उसकी संस्कृति को व्यक्त करता है।
उन्होंने कहा कि भारत की 22 भाषाओं के साहित्य बेहद धनी हैं और भारतीय सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखने में अतुलनीय भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ही देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाया जा सकता है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद इंस्टिट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज के निदेशक डॉ. सरूप प्रसाद घोष ने भी इस अवसर पर अपने विचार प्रकट किए और कहा कि साहित्य समाज की प्रगति और परिवर्तन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्य समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है और समाज की समग्र प्रगति में योगदान देता है। भारतीय भाषाओं के साहित्य ने राष्ट्रवाद और धार्मिक भावनाओं को हमेशा संजोकर रखा है।
कार्यक्रम में उपस्थित दर्शकों ने भी इस चर्चा को अत्यंत उपयोगी और ज्ञानवर्धक पाया। इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से साहित्य और समाज के बीच के गहरे संबंधों को समझने और समाज के विकास में साहित्य की भूमिका को पहचानने का अवसर मिलता है।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य साहित्य के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाना और समाज की विभिन्न समस्याओं को उजागर करना था। कार्यक्रम का समापन साहित्य और समाज के बीच के इस अद्भुत संबंध को और अधिक गहरा बनाने के संकल्प के साथ हुआ। संस्कार भारती की ओर से निलांजना राय ने बताया कि चर्चा बेहद सार्थक रही और साहित्य और संस्कृति के सामंजस्य को समझने में काफी मदद मिली है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर / गंगा / प्रभात मिश्रा