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डॉ. मयंक चतुर्वेदी
हलाल सर्टिफिकेट को लेकर यूपी एसटीएफ के बाद अब ईडी भी इस संबंध में सख्त कार्रवाई करने जा रही है, जिसके लिए हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियों और उससे जुड़ी संस्थाओं पर शिकंजा कसना शुरू हो रहा है। वस्तुत: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हलाल सर्टिफिकेट बांटने वाली संस्थाओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज करने की अपनी तैयारी पूरी कर ली है।
मनी लॉन्ड्रिंग में वित्तीय परिसंपत्तियों को छिपा कर उनका उपयोग उस अवैध गतिविधियों में किया जाता है जो देश के विरोध में हैं। अपराधी, आपराधिक गतिविधि से प्राप्त मौद्रिक आय को दूसरे प्रकार के धन में बदल देता है। इस प्रक्रिया के विनाशकारी सामाजिक परिणाम होते हैं। एक प्रकार से मनी लॉन्ड्रिंग ड्रग डीलरों, आतंकवादियों, हथियार डीलरों और अन्य अपराधियों को अपने आपराधिक उद्यमों को संचालित करने और विस्तारित करने के लिए ईंधन प्रदान करता है। इसलिए इस मामले में ईडी की हुई इंट्री बहुत खास है।
यहां थोड़ा 'हलाल' शब्द के बारे में समझ लेते हैं; यह हलाल एक अरबी शब्द है इसका मतलब है 'जायज़'। हलाल सर्टिफाइड का मतलब है कि खाने वाला प्रोडेक्ट शुद्ध है और इस्लामी क़ानून के मुताबिक तैयार किया गया है। उस उत्पाद को हलाल सर्टिफाइड नहीं माना जा सकता है जिसमें हराम सामग्री जैसे मरे या अवैध जानवर जैसे पिग का कोई हिस्सा, अल्कोहल शामिल हो। यहां समझने वाली बात यह है कि शाकाहारी उत्पाद में मांस या मीट शामिल नहीं होता, इसके बाद भी मुसलमानों के लिए शाकाहारी प्रोडक्ट को हलाल नहीं माना जाता है, लेकिन जैसे ही भारत की कुछ इस्लामिक संस्थाएं 'हलाल' सर्टिफिकेट जारी कर देती हैं, वैसे ही यह सभी शाकाहारी सामान भी इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हर मुसलमान के लिए हलाल हो जाता है।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि यदि हलाल प्रमाण-पत्र सिर्फ मीट प्रॉडक्ट तक सीमित होता तब भी कुछ समझ आता, लेकिन यहां तो यह स्नेक्स, मिठाइयों , अनाज, तेल, कॉस्मेटिक्स, साबून, शैम्पू, टूथपेस्ट, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, चश्मा, जैसे तमाम उत्पादों के लिए भी यह अनिवार्य किया गया है। जबकि नियमों के स्तर पर इस्लाम को माननेवालों को अलग से कोई छूट नहीं है, फिर इस हलाल सर्टिफिकेट की मजहबी आड़ में एक वर्ग विशेष में अनर्गल प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है कि ऐसे उत्पाद का प्रयोग न करें, जिसे इनकी कंपनी द्वारा हलाल प्रमाण-पत्र न दिया गया हो। परिणामस्वरूप दूसरे समुदाय विशेष के व्यावसायिक हितों का भारी नुकसान हो रहा है।
इसमें सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जो पहले से ही शुद्ध है, उसकी शुद्धता प्रमाणित करने के नाम पर यह वसूली भारत में इस्लामिक संस्थाएं जमीयत-उलमा-ए-महाराष्ट्र, हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत-उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड प्रमुखता से हलाल सर्टिफिकेट जारी करने के नाम पर वर्षों से कैसे करती चली आ रही हैं? आप सोच सकते हैं कि कैसे तमाम सरकारी जांच एजेंसियों के होते हुए भी सामने से हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर भारत सरकार, राज्य सरकारों और देश के आम उद्योगपति,की आंख में 'धूल झोंकने का काम' किया जा रहा है!
यह किस प्रकार की मनमर्जी है कि 'हलाल' प्रमाण-पत्र के नाम पर ऐसा करनेवालों ने उन तमाम नियमों को भी एक झटके में ताक में रख दिया है, जो भारत सरकार एवं राज्य सरकारों ने फूड प्रोसेसिंग, नागरिक खाद् सुरक्षा के लिए अनिवार्य किए गए हैं। इसलिए ही आज इस गोरख धंधे को तुरन्त बंद कर देने की अवाज चहुंओर से उठ खड़ी हुई है । यह पूरा खेल हर कंपनी में 'हलाल' सर्टिफिकेट की आड़ में जबरन मुसलमानों को रोजगार दिलाने और एक अवैध समानान्तर अर्थव्यवस्था खड़ी कर लेने का है। जिससे कि आतंकवाद को पेाषित करने का संदेह भी बार-बार सामने आता रहा है।
हलाल सर्टिफिकेट बांट रही मुस्लिम संस्थाओं पर आज इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि यह सभी पैसे लेकर बिना कोई जांच किए अवैध रूप से सर्टिफिकेट बांटती हुई पाई कई हैं। इस पूरे मामले में योगी सरकार की प्रशंसा करनी होगी कि इससे जुड़ी सभी अवैध गतिविधियों पर शिकंजा कसने का काम सबसे पहले यदि किसी की ओर से किया गया तो वह राज्य उत्तरप्रदेश है। यूपी एसटीएफ जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी से भी पूछताछ कर चुकी है। पिछले वर्ष नवंबर में लखनऊ पुलिस ने एक एफआईआर भी दर्ज की थी, जिसमें हलाल सर्टिफिकेट को लेकर कुछ संगठनों और लोगों के नाम थे, वहीं, योगी सरकार ने सख्ती दिखाते हुए पूरे प्रकरण की जांच स्पेशल टास्क फोर्स ( एसटीएफ )को सौंप दी थी, फिर जांच आगे बढ़ते ही 13 फरवरी 2024 को हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया के चार पदाधिकारियों को मुंबई से गिरफ्तार भी कर लिया गया था।
दरअसल, एसटीएफ ने पाया कि महमूद असद मदनी सर्टिफिकेट बांटनेवाले मुख्य सरगनाओं में से एक है, इसलिए उसने मदनी से गहराई से पूछताछ की लेकिन वह स्पष्ट तौर पर यह नहीं बता पाया कि आखिर 'हलाल सर्टिफिकेट' में वे किस अधार पर 10 हजार की फीस और हर प्रोडक्ट के लिए एक हजार रुपये अलग से ले रहे हैं। इसी के साथ इस प्रमाण-पत्र की वैधता के सवाल पर भी मौलाना मदनी कुछ नहीं बता पाए। यह व्यक्ति कितनी अहम भूमिका रखता है, वह इसी से समझ सकते हैं कि महमूद मदनी जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख है और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट के अध्यक्ष भी है। उसके बाद उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने मामले से जुड़ी अन्य कई गिरफ्तारियां कीं और इस पूरे खेल में अब सामने आ रहा है कि हलाल सर्टिफिकेट बांटने से होने वाली कमाई को कई कंपनियों में नियम विरुद्ध डायवर्ट किया गया है।
अबतक की जांच में यह भी पता चला है कि इस पूरे प्रकरण में अनेक शेल कंपनियां एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। कई करोड़ का यह घोटाला है और कई करोड़ का एक बड़ा आर्थिक अपराध भी है। इसी कारण से अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की इंट्री भी इसमें होने जा रही है। मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज करने की उसकी तैयारी है।
भारत का बहुसंख्यक हिन्दू समाज लम्बे समय से यह मांग राज्य सरकारों एवं केंद्र की सरकार से कर रहा है कि आखिर देश में मुसलमानों की संख्या सिर्फ 15 प्रतिशत है तो बाकी की 85 फीसदी जनसंख्या को 'हलाल' के नाम पर सामान खरीदने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? यहां मांसाहार में 'हलाल' का होना उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुसार समझ में आता है किंतु किसी भी कंपनी, संस्था या छोटे दुकानदार, वस्तु निर्माता को इसके लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए कि यदि उसने 'हलाल' सर्टिफिकेट नहीं लिया है तो उसके सामान को बाजार के चलन में ही नहीं आने दिया जाएगा।
इसके साथ ही उन तमाम कंपनियों पर यह आरोप भी लगना सामने आता रहा है कि हलाल सर्टिफिकेट से प्राप्त आय का उपयोग देश में आतंकवाद को पोषित करने के लिए किया जाता है। अब इस मामले में यह अच्छा हो रहा है कि ईडी इसकी गहराई से जांच करने जा रही है। निश्चित ही इससे सही तथ्य देश के सामने आ सकेंगे और देश में जो मजहब के नाम पर आर्थिक या अन्य प्रकार का अपराध जो वर्षों से चल रहा है, उसे करने वालों के चेहरे भी बेनकाब हो सकेंगे।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)/संजीव