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प्रदीप मिश्र
अट्ठारहवीं लोकसभा के लिए चुनाव के बीच पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाला जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) में चल रहे जन आंदोलन से हालात नाजुक हो गए हैं। इसकी तात्कालिक वजह भले ही महंगाई है लेकिन इसमें दशकों से सरकार और सुरक्षाबलों का अत्याचार बर्दाश्त कर रहे अवाम की आवाज भी साफ सुनी जा सकती है। पाकिस्तान के कठपुतली नेतृत्व और नीतियों पर लोगों का भरोसा खत्म हो गया है। शुक्रवार से शुरू विरोध प्रदर्शन का मंगलवार को चौथा दिन था। इस दौरान मुजफ्फराबाद में प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए। गोलीबारी की गई, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई। प्रतिक्रिया के तौर पर इस मामले में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सख्त इरादों का इजहार कर दिया। कह दिया कि पीओजेके भारत का था, है और रहेगा। विलय की औपचारिक घोषणा होना है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह ये बात कई बार कह चुके हैं। इसके अलावा सैन्य नेतृत्व समय-समय पर भारत की कमजोरी के इस कलंक को कालकवलित करने के लिए कभी भी कार्रवाई का संकेत देता रहता है।
प्रदर्शनकारी सड़कों पर हैं। माहौल को सामान्य बनाने और समस्याओं के समाधान के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 23 अरब रुपये जारी किए हैं। फिर भी बात नहीं बन रही। बदतर बर्ताव और बदनीयती से आजिज लोगों के तल्ख तेवर कभी भी तूफान बन सकते हैं। जनाक्रोश को विदेश में भी समर्थन है। यूनाइटेड कश्मीर पीपुल्स नेशनल पार्टी की ओर से ब्रिटेन में पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास के सामने प्रदर्शन किया। सरकार के खिलाफ बगावत सतह पर है। जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी पाकिस्तान से आजादी मांग रही है। नियंत्रण रेखा के उस पार से कमेटी इसके लिए भारत सरकार से मदद चाहती है। दरअसल, महंगाई, बेरोजगारी, उपेक्षा, दमन से त्रस्त अवाम को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में आए सकारात्मक बदलाव और विकास की बयार को देख-सुनकर उम्मीदें बेइंतिहां बढ़ गई हैं। उन्हें लग रहा है कि उनकी सोच और सारे सपने सच हो सकते हैं।
अवाम की इस आवाज को भारत न तो अनसुना कर रहा है, न ही दर्द भरे आक्रोश व सड़कों पर रोष अनदेखी कर रहा है। हर पहलू पर सरकार की नजर है। भारत इसे संसद में पारित सर्वसम्मत संकल्प को पूरा करने की दिशा में बड़ा कदम मान रही है। पीओजेके को भारत का भूभाग बनाने के लिए संसद में 22 फरवरी 1994 को संकल्प लिया गया था। 30 साल हो गए हैं। 1949 में की गई तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की गलती सुधारना भाजपा का भी अहम लक्ष्य है। अनुच्छेद 370 और पीओजेके सरकार और पार्टी के लिए एक जैसे और एक ही कालखंड के हैं। अपने दूसरे प्रधानमंत्रित्वकाल में नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर पर जो अकल्पनीय और ऐतिहासिक फैसला किया, उसके बाद पीओजेके में ही नहीं, भारत में भी कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक उम्मीदें परवान पर हैं। माना जा रहा है कि चुनाव नतीजों में तीसरी बार भाजपा को 370 सीटें न मिलने के बावजूद उसके नेतृत्व में एनडीए की तीसरी बार सरकार बनने पर पीओजेके के अवाम की भावना को मूर्त रूप देना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। पीओजेके के विलय से ही जम्मू-कश्मीर की भारत से अभिन्नता के अभीष्ट की पूर्ति होगी। दक्षिण एशिया की घटना दुनिया के लिए सबक होगी।
यह पहली बार नहीं है, जब पीओजेके के लोग सरकार से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। इसी साल पाकिस्तान के आम चुनाव से पहले फरवरी में गिलगित-बाल्टिस्तान के वाशिंदों ने कश्मीरी एकजुटता दिवस के विरोध में बंद और हड़ताल के अलावा कई देशों में प्रदर्शन किए थे। वे चाहते हैं कि उन्हें भारत के लद्दाख क्षेत्र का हिस्सा बनाकर संसद में नुमाइंदगी भी दी जाए। यहां के लोग भी कंगाली-तंगहाली, जोर-जबरदस्ती और उपेक्षा-उत्पीड़न के कारण खुद को आधा-अधूरा नागरिक मानते हैं। पाकिस्तान सरकार 1990 के बाद से पांच फरवरी को कश्मीर डे यानी कश्मीरी एकजुटता दिवस मनाती आ रही है। कथित आजाद कश्मीर के अवाम ने दो साल पहले से इन कार्यक्रमों से दूरी बना ली है। बीते साल इन्होंने ऐसे आयोजनों को धोखाधड़ी दिवस बताया था। इन दिनों विरोध प्रदर्शनों में भारत के समर्थन में तिरंगा लगाए गए हैं। वे विलय चाहते हैं और भारत से भूल सुधार की गुहार लगा रहे हैं।
पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के लिए किेए गए संसद में पारित संविधान संशोधन के बाद परिसीमन में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके के लिए 24 सीटें आरक्षित की गई हैं। 2009 में पाकिस्तान ने अधिकार न होने के बावजूद पीओके को आजाद कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के रूप में विभाजित किया, जिसका क्षेत्रफल 86,267 वर्ग किलोमीटर है। नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर सरकार ने इस संयुक्त क्षेत्र को पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) बताया है। पाकिस्तान में 2017 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार सुन्नी बहुतायत वाले आजाद कश्मीर की आबादी 4.45 करोड़ और शिया बहुल गिलगित-बाल्टिस्तान की जनसंख्या 1.49 करोड़ थी। दोनों विधानसभाओं के लिए क्रमशः 45 और 33 सदस्य चुने जाते हैं। भारत के अधिकार क्षेत्र में आने पर लोकतंत्र के सशक्तीकरण के लिए ये जम्मू-कश्मीर की मौजूदा 90 सीटों से कम नहीं होंगी। बेशक, गिलगित-बाल्टिस्तान, सिंध, आजाद कश्मीर और बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं लेकिन भारत के लोग भी कश्मीर की कश्मकश को कारगर कोशिश, करिश्मे और कारनामे में बदलते देखना चाहते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)