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प्रयागराज, 07 दिसम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित अटाला मस्जिद ने एक स्थानीय अदालत के मई 2024 के आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया है। जिसमें एक मुकदमे के पंजीकरण की अनुमति दी गई है। जिसमें दावा किया गया है कि मस्जिद मूल रूप से एक प्राचीन मंदिर था जिसे ’अटाला देवी मंदिर’ कहा जाता था।
यह वाद स्वराज वाहिनी एसोसिएशन (एसवीए) के प्रतिनिधि और संतोष कुमार मिश्रा द्वारा जौनपुर की एक स्थानीय अदालत में दायर किया गया है। इस मुकदमे में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि 14वीं शताब्दी की विवादित सम्पत्ति ’अटाला देवी मंदिर’ है और सनातन धर्म के अनुयायियों को वहां पूजा करने का अधिकार है।
इन वाद में स्थानीय अदालत से अनुरोध किया गया है कि उन्हें विवादित सम्पत्ति पर कब्ज़ा दिलाया जाए। साथ ही, वे गैर-हिंदुओं को विवादित सम्पत्ति में प्रवेश करने से रोकने के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा की भी मांग की गई है। ट्रायल कोर्ट ने पहले मुकदमे को प्रतिनिधि क्षमता में (सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के तहत) आगे बढ़ाने की अनुमति दी थी। जिस निर्णय को इस वर्ष अगस्त में जिला न्यायाधीश ने बरकरार रखा था। इन दोनों आदेशों को अब मस्जिद द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका में चुनौती दी गई है।
वक्फ अटाला मस्जिद (याचिकाकर्ता) का तर्क है कि हिन्दू पक्ष का मुकदमा मूल रूप से दोषपूर्ण है, क्योंकि वादी, जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत सोसायटी है, एक कानूनी व्यक्ति नहीं है और इसलिए उसके पास प्रतिनिधि क्षमता में मुकदमा दायर करने का कानूनी आधार नहीं है। मस्जिद ने कहा कि सोसायटी के नियम भी उसे इस तरह के मुकदमे में शामिल होने की अनुमति नहीं देते। हाईकोर्ट के समक्ष दायर याचिका में आगे तर्क दिया गया है कि चर्चा में आने वाली सम्पत्ति हमेशा से मस्जिद रही है और यह कभी भी किसी अन्य धर्म के अनुयायियों के कब्जे या स्वामित्व में नहीं रही है।
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि 1398 में इसके निर्माण के बाद से इस सम्पत्ति का लगातार मस्जिद के रूप में उपयोग किया जा रहा है, तथा मुस्लिम समुदाय यहां नियमित रूप से जुमे की नमाज सहित अन्य नमाज अदा करता रहा है। जौनपुर सिविल कोर्ट के समक्ष अपने मुकदमे में हिन्दू वादी ने दावा किया है कि विचाराधीन सम्पत्ति में अटाला देवी मंदिर हुआ करता था, जिसका निर्माण 13वीं शताब्दी में राजा विजय चंद्र ने कराया था, जो एक हिन्दू मंदिर था जहां पूजा, सेवा और कीर्तन जैसे अनुष्ठान किए जाते थे।
उनका दावा है कि 13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, फिरोज तुगलक के भारत पर आक्रमण के बाद, मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था और इसके खम्भों पर एक मस्जिद बनाई गई थी। वादी के अनुसार, तुगलक ने हिन्दुओं को इस स्थल में प्रवेश करने से रोक दिया था। जिसके बारे में उनका कहना है कि यह मूल रूप से एक हिन्दू मंदिर था जिसे पारम्परिक स्थापत्य शैली में हिन्दू कारीगरों द्वारा निर्मित किया गया था।
हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे