कांग्रेस को भारी पड़ेगी डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक पर ओछी राजनीति
विकास सक्सेना पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 साल की आयु में दुखद निधन हो गया। सामान्यतः ऐसे समय में परिजनों और नजदीकी लोगों की प्राथमिकता होती है कि मृतक को सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई दी जाए। इस सामान्य शिष्टाचार और नैतिकता को दरकिनार कर कां
विकास सक्सेना


विकास सक्सेना

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 साल की आयु में दुखद निधन हो गया। सामान्यतः ऐसे समय में परिजनों और नजदीकी लोगों की प्राथमिकता होती है कि मृतक को सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई दी जाए। इस सामान्य शिष्टाचार और नैतिकता को दरकिनार कर कांग्रेस और उसके कई सहयोगी दलों ने मनमोहन सिेह के स्मारक को लेकर राजनीति शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पत्र का जवाब देते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि डॉ. मनमोहन सिंह का स्मारक बनाया जाएगा। इसके बावजूद कांग्रेस के नेता सरकार पर डॉ. मनमोहन सिंह के अपमान के आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिप़क्ष राहुल गांधी ने तो सोशल मीडिया पर इसे सिखों के अपमान से जोड़ दिया। इस तरह एक बार फिर स्तरहीन राजनीति करके कांग्रेस ने कई पुरानी घटनाओं की याद ताजा कर दी है। अगर सियासी नजरिए से देखा जाए तो इसका भी कांग्रेस को कोई लाभ अपेक्षा नुकसान होने की संभावना ज्यादा दिख रही है।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं में शोक से ज्यादा आक्रामकता का भाव दिखाई दे रहा है। उनके निधन के तुरन्त बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए यमुना के किनारे जगह देने और उनका समाधि स्थल बनाने के मांग की थी। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष को बता दिया था कि वे चाहते हैं कि डॉ. मनमोहन सिेह जी का स्मारक बनाया जाए लेकिन इसके लिए भूमि के आवंटन और ट्रस्ट बनाने आदि की औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी। इसलिए पहले उनका सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया जाए। मल्लिकार्जुन खड़गे उनकी बात से सहमत हो गए इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार पर आरोप लगाने का कोई भी अवसर न छोड़ने की जिद ठाने बैठे नेता इस दुखद घटना का राजनैतिक लाभ उठाने के प्रयास में जुट गए।

ऐसा लगता है कि हमारे देश के कुछ नेता प्राकृतिक आपदा, आतंकी हमला, महिलाओं से बलात्कार और यहां तक कि अपने नेता के निधन को भी राजनैतिक अवसर के तौर पर देखने लगे हैं। यह जानते हुए भी कि जगह की कमी को देखते हुए दिवंगत राष्ट्रीय नेताओं के अलग-अलग स्मारक बनाने पर मनमोहन सिंह की सरकार ने ही रोक रोक लगाई थी, इस पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। दरअसल 16 मई 2013 को शहरी विकास मंत्रालय की ओर से एक नोट जारी किया गया था। इस नोट में कहा गया था कि संप्रग सरकार की केबिनेट ने जगह की कमी को देखते हुए राजघाट पर ‘राष्ट्रीय स्मृति स्थल’ के नाम से साझा स्मारक स्थल बनाने का फैसला किया है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट करके मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार कराकर सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अपमान किया है। उन्होंने इसे सिख धर्म से जोड़ते हुए यहां तक कहा कि वह देश के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। लेकिन इन दोनों ही विषयों को उठाकर राहुल गांधी ने एक बार फिर खुद को कटघरे में खड़ा कर लिया है। मनमोहन सिंह का राहुल गांधी कितना सम्मान करते थे ये लोगों ने उस समय देखा जब उन्होंने पत्रकार वार्ता के दौरान सरकार के अध्यादेश को फाड़कर फेंक दिया था।

दरअसल, न्यायालय से सजा प्राप्त व्यक्ति की संसद सदस्यता समाप्त करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए मनमोहन सिंह की सरकार ने वर्ष 2013 में अध्यादेश जारी किया था। कांग्रेस के मीडिया और संचार प्रमुख अजय माकन प्रेस क्लब में अपनी नियमित प्रेस वार्ता में पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे और इस अध्यादेश पर सरकार का बचाव कर रहे थे। इसी दौरान राहुल गांधी नाटकीय अंदाज में वहां आते है। अपने लगभग दस मिनट के संबोधन में वे इस अध्यादेश को ‘बकवास’ बताते हुए कहते हैं कि ‘इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।’ इसके बाद वह इसकी एक प्रति को सार्वजनिक तौर पर फाड़कर वहां से चले जाते हैं। हालांकि प्रेस क्लब में मौजूद पत्रकार उनसे जानना चाहते हैं कि इस तरह का व्यवहार करके क्या वह मनमोहन सिंह की सरकार को कमजोर नहीं कर रहे? लेकिन वे पत्रकारों के किसी भी सवाल का जवाब दिए बिना वहां से उठ कर चले गए। जिस समय संप्रग सरकार की केबिनेट द्वारा पास किए गए अध्यादेश को राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से फाड़ा उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश में नहीं थे। वह विदेश यात्रा पर गए हुए थे।

राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को देश का पहला सिख प्रधानमंत्री बताते हुए इस मामले को सिख धर्म से भी जोड़ने का प्रयास किया है। लेकिन उन्हें 1984 में सिखों के खिलाफ हुई भीषण हिंसा को याद रखना होगा। कांग्रेसियों ने निर्ममता पूर्वक सिखों की हत्या की। सिख विरोधी दंगों के आरोप में कांग्रेस के कई बड़े नेता आज भी फंसे हुए हैं। लेकिन इस सबसे शर्मनाक बात ये है कि जब राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से इस संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने निर्लज्जता पूर्वक कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। उनका यह जवाब सिखों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा था।

गांधी परिवार के बाहर के नेताओं को यथोचित सम्मान न देने के आरोपों से कांग्रेस पहले से ही घिरी हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के निधन के बाद दिल्ली में उनके अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी गई। इतना ही नहीं नरसिम्हाराव के अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखने दिया गया। आरोप तो यहां तक है कि नरसिम्हाराव का शव अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय गया था लेकिन उसका गेट भी नहीं खोला गया। कहा जाता है कि उस समय सोनिया गांधी कांग्रेस मुख्यालय में मौजूद थी। दस साल की सरकार के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने उनका स्मारक बनवाने की भी आवश्यता नहीं समझी। हालांकि मोदी सरकार ने उनका स्मारक बनवाया है। इसलिए मनमोहन सिंह के निधन के बाद जिस तरह के मुद्दे उठाकर राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेता मोदी सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं उनके उखड़ने पर कांग्रेस ही कटघरे में खड़ी नजर आएगी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश