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पासीघाट (अरुणाचल प्रदेश), 03 दिसंबर (हि.स.)। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सियांग जिले के पासीघाट में साधारण सी कुटिया, चारों ओर घास-फूस और अपने काम में गहरी तल्लीनता- यह दृश्य है यानुंग जामोह लेगो का। लेगो को इसी वर्ष 2024 में जड़ी-बूटियों के माध्यम से असाध्य रोगों के इलाज के लिए पद्मश्री से अलंकृत किया गया। पासीघाट की रहने वाली लेगो ने 35 वर्षों तक राज्य कृषि विभाग के उपनिदेशक के रूप में सेवाएं दीं, लेकिन उनका असली जुनून जड़ी-बूटियों से लोगों को रोगमुक्त करना है।
लेगो का मानना है कि भारतीय दवा बाजार को विदेशी और देशी कंपनियां एटीएम की तरह देखती हैं। वे कहती हैं- बीमारी की आड़ में दवा कंपनियां भारत से पैसा निकाल रही हैं। केमिकल से ही बीमारियां हो रही हैं और प्रकृति में हर बीमारी का इलाज मौजूद है। जंगल के जानवर बीमार नहीं पड़ते, क्योंकि वे केमिकल नहीं खाते। इंसान अगर प्राकृतिक चीजों पर ध्यान दें तो बीमारियां खत्म हो सकती हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं के व्यावसायीकरण पर तीखा हमला बाेलते हुए लेगो ने कहा कि डॉक्टर अब बीमारी को व्यवसाय बना चुके हैं। मैं बीमारी खत्म करना चाहती हूं। इसे मुनाफे का साधन नहीं। आधुनिक चिकित्सा आपात स्थितियों में जरूरी हो सकती है, लेकिन अगर समय हो तो प्राकृतिक उपचार बीमारियों को जड़ से ठीक कर सकता है।
अपनी कुटिया में वह हर मंगलवार और शनिवार को ओपीडी चलाती हैं। जहां देश-विदेश से लोग उनके पास इलाज के लिए आते हैं। हालांकि लेगो का इलाज अब पूरी तरह निःशुल्क नहीं है। उन्होंने जड़ी-बूटियों के माध्यम से कैंसर, ट्यूमर और फेफड़ों की बीमारियों का सफल इलाज किया है। उन्होंने कहा कि कैंसर का इलाज आसान है, जो व्यक्ति रसायन खाता है उसे कैंसर होता है। जो व्यक्ति प्राकृतिक चीज़ें खाता है उसे कभी कैंसर नहीं होगा। उन्होंने बताया कि उनका मासिक खर्च करीब 8 लाख रुपये तक पहुंचता है, लेकिन सरकार की ओर से उन्हें कोई सहायता नहीं मिलती।
एमएससी एग्रीकल्चर तक की शिक्षा प्राप्त करने वाली लेगो ने जड़ी-बूटियों की पहचान और उनके जरिए इलाज करने में विशेष दक्षता हासिल की है। उनका कहना है कि ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसका इलाज जड़ी-बूटियों से न हो सके। यह प्रकृति का वरदान है, लेकिन इसे समझने और अपनाने में लोग पीछे रह गए हैं। अपने प्राकृतिक इलाज और जड़ी-बूटियों के प्रति बढ़ते भरोसे के कारण दवा व्यापारियों का विरोध भी झेल चुकी हैं। लेगो ने कहा कि कई बार उन्हें धमकियां दी गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
साल 2024 में पद्मश्री से अलंकृत होने के बाद लेगो का उत्साह और बढ़ गया है। उन्हें जड़ी-बूटियों की रानी के नाम से जाना जाता है। उनका कहना है कि लोग अगर प्रकृति के करीब आएं, तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचा जा सकता है। आधुनिक केमिकल दवाओं के बजाय प्राकृतिक इलाज पर ध्यान देना जरूरी है। लेगो भारत की प्राकृतिक विरासत को सहेजने और लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का प्रतीक बन चुकी है। उन्होंने सरकार और समाज से प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने की अपील की है।
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हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर