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बीकानेर, 26 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर को अश्व संरक्षण में बेहतरीन कार्य करने से लगातार दूसरी बार नस्ल संरक्षण पुरस्कार प्रदान किया गया।
केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ एस सी मेहता ने बताया भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की तरफ से राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल द्वारा यह पुरस्कार प्रतिवर्ष राष्ट्रीय किसान दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम में दिया जाता है। जहाँ पिछले वर्ष उक्त पुरस्कार मारवाड़ी घोड़ों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए प्रदान किया गया था वहीं इस वर्ष यह पुरस्कार गुजरात के हलारी अश्व के संरक्षण हेतु मुख्य अतिथि डॉ.ए.के.श्रीवास्तव, कुलपति, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, मथुरा एवं विशिष्ट अतिथि जगत हजारिका, मत्स्य पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के सांख्यिकी सलाहकार एवं ब्यूरो के निदेशक डॉ बी पी मिश्रा के कर कमलों से प्रदान किया गया।
ज्ञात रहे कि दोनों वर्ष उक्त पुरस्कार स्वयं डॉ एस सी मेहता, प्रभागाध्यक्ष द्वारा उनके मार्गदर्शन में किया गए कार्यों के आधार पर उन्हें प्रदान किए गए। डॉ मेहता ने बताया कि अश्व नस्ल संरक्षण के लिए विधिवत ब्रीडिंग प्लान बनाया जाता है एवं अन्तः प्रजनन को सिमित रखते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी अनुवांशिक प्रगति को बढाया जाता है। आवश्यकता अनुसार बाह्य प्रजनन हेतु अच्छे घोड़े लाए जाते हैं एवं प्रजनन करवाया जाता है। साथ ही अश्व पालकों, इंटरप्रुनर्स एवं पशु चिकित्सकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
डॉ मेहता ने इस बात पर भी ख़ुशी जाहिर की कि मेवाड़ी नस्ल के ऊंटाें को वर्ष 2007 में वह पहली बार राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र पर लाए थे एवं संरक्षण का कार्य प्रारंभ हुआ था उसको भी इस वर्ष नस्ल संरक्षण पुरस्कार प्रदान किया गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजीव