स्मृति शेषः  उस्ताद जाकिर हुसैन
डॉ. आर.के. सिन्हा उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन से सारा देश और दुनिया भर में रहने वाले उनके प्रशंसक उदास हैं। कल ही अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत के सान फ़्रांसिस्को शहर के कब्रिस्तान में उनके पार्थिव शरीर को “सुपुर्द-ए-ख़ाक” किया गया। विश्व भर के सै
आर के सिन्हा


डॉ. आर.के. सिन्हा

उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन से सारा देश और दुनिया भर में रहने वाले उनके प्रशंसक उदास हैं। कल ही अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत के सान फ़्रांसिस्को शहर के कब्रिस्तान में उनके पार्थिव शरीर को “सुपुर्द-ए-ख़ाक” किया गया। विश्व भर के सैकड़ों प्रशंसक भरे मन से उस्ताद को मिट्टी देने पहुँचे। उनके प्रशंसकों का तो यही कहना है कि उनके जैसा तबला वादक फिर कभी नहीं होगा। यह तो भविष्य बताएगा। परंतु, अब उस्ताद जाकिर हुसैन, पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की जुगलबंदियां लोगों को बार-बार याद आएगी। मैं अपने युवावस्था में पटना के गर्दनीबाग मैदान में दशकों तक हर वर्ष दुर्गापूजा के अवसर पर इन महान कलाकारों के आयोजनकर्ताओं में एक रहा हूँ। इन सभी के संघर्ष के दिनों को काफी क़रीब से देखा है।

उनके जैसा तबला वादक फिर कभी नहीं होगा- यह कहना सही नहीं होगा। संगीत ऐसी चीज है, जिसकी विकास यात्रा अनवरत जारी रहती है। हो सकता है भविष्य में कोई ऐसा तबला वादक आए जो अपनी प्रतिभा और मेहनत से जाकिर हुसैन की याद दिला दे। लेकिन, अभी के लिए, यह कहना सही ही है कि उस्ताद जाकिर हुसैन जैसा तबला वादक दोबारा पैदा होना मुश्किल है। वे अद्वितीय और महान कलाकार थे।

उस्ताद जाकिर हुसैन, पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया की जुगलबंदियां कमाल की होती थीं। इन दिग्गजों का साथ-साथ मंच पर आना ही अपने आप में अद्भुत अनुभव होता था। उस्ताद जाकिर हुसैन तबले के उस्ताद थे और उनकी लयकारी का मुकाबला नहीं था। पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर बजाते थे, जो एक मधुर और अद्वितीय वाद्य है। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया बांसुरी के जादूगर हैं और उनकी बांसुरी की धुनें मन मोह लेती हैं। जब ये मंच पर आते तो लय, ताल और मधुरता का अद्भुत संगम होता था। इन कलाकारों के बीच जबर्दस्त सामंजस्य था। वे एक-दूसरे की कला का सम्मान करते और एक-दूसरे के साथ संवाद करते हुए संगीत बनाते। उनकी जुगलबंदी सिर्फ एक साथ बजाना मात्र नहीं थी बल्कि एक-दूसरे के साथ संगीत की महान यात्रा में शामिल होने जैसा था। इनकी जुगलबंदियों में भावनात्मक गहराई भी थी। वे संगीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे और श्रोता भी उनसे जुड़ जाते थे। इसमें खुशी, गम, प्यार और शांति जैसे भावों का अनुभव होता था। तीनों कलाकारों की जुगलबंदियां भारतीय शास्त्रीय संगीत की अनमोल विरासत के रूप में याद रखी जाएंगी। उन्होंने दुनिया भर में भारतीय संगीत को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मेरा मानना है कि उस्ताद जाकिर हुसैन और पंडित शिवकुमार शर्मा की जुगलबंदी भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में अद्भुत और अद्वितीय परिघटना थी। दोनों अपने-अपने वाद्य यंत्र के महारथी थे। जब ये दोनों मंच पर एक साथ आते तो ऐसा जादुई माहौल बन जाता था जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। जाकिर हुसैन की तबले की थाप और शिवकुमार शर्मा के संतूर की मधुर ध्वनियाँ एक साथ मिलकर ऐसा लयबद्ध मिश्रण बनाती थीं कि समां बंध जाता था। दोनों दिग्गज एक-दूसरे की लय को अच्छी तरह समझते भी थे और उसके साथ तालमेल बिठाते हुए इस साझा संगीत को नई ऊंचाइयों पर ले जाते थे। उनकी जुगलबंदी केवल संगीत नहीं बल्कि आत्मिक संवाद थी। ऐसा लगता था जैसे दोनों कलाकार अपने वाद्य यंत्रों के माध्यम से एक-दूसरे से बातें कर रहे हों। वे अपने संगीत के माध्यम से श्रोताओं को अलग भावनात्मक या यूँ कहें कि आध्यात्मिक दुनिया में ले जाते थे।

पंजाब घराने से संबंध रखने वाले जाकिर हुसैन अपनी जटिल और बारीक लयकारी के लिए जाने जाते थे। लय और ताल पर गजब की पकड़ थी। वे मुश्किल से मुश्किल तालों को आसानी से बजा लेते थे। तबला बजाते समय नए-नए प्रयोग करते, जिससे उनकी प्रस्तुति हमेशा ताजा और दिलचस्प लगती थी। जाकिर हुसैन के तबले की धुन में अलग भावना होती थी, जो सुनने वाले को छू जाती थी। जाकिर हुसैन ने तबला वादन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने दुनिया भर के कई कलाकारों के साथ काम किया और तबले को वैश्विक वाद्य यंत्र बनाया।

मैंने जाकिर हुसैन के कार्यक्रमों को दिल्ली और पटना में अनेकों बार निकटता से देखा है। वे हर बार छा जाते थे। उनके तबले से निकलने वाली हर ध्वनि स्पष्ट और सटीक होती थी। वे तबले के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग तरह की आवाजें निकालने में माहिर थे। उनकी उंगलियां तबले पर इतनी तेजी से चलती थीं कि देखने वाले हैरान रह जाते। वे अपनी अंगुलियों से विभिन्न तरह के बोल और लय बजाते। वह तबले के साथ संवाद करते हुए महसूस होते। इस तरह लगता था कि मानों उनकी उंगलियां तबले से जैसे कोई कहानी कह रही हों।

जाकिर हुसैन शिखर पर अपनी कड़ी मेहनत के बल पर पहुंचे थे। वे अंत तक हर दिन रियाज करते, जिससे उनकी कला का निखार बना रहे। उन्होंने अलग-अलग संगीत शैलियों में काम किया, जिससे उनका संगीत और भी समृद्ध हुआ। दुनिया भर के कई प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। विभिन्न संस्कृतियों के संगीत को मिलाकर नया रूप दिया। वे भारतीय संगीत के राजदूत थे। उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संगीत को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतने बड़े कलाकार होने के बावजूद जाकिर हुसैन बहुत सरल और विनम्र स्वभाव के थे। हमेशा दूसरों का सम्मान करते। इससे उनके प्रति सम्मान का भाव और बढ़ जाता था। वह युवा संगीतकारों के लिए प्रेरणा थे। उनसे सीख कर कई युवा तबला वादक आज अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश