खूंटी जिले के बिरहोर चुआं गांव में नहीं रहता है कोई इंसान 
खूंटी, 17 दिसंबर (हि.स.)। गांव शब्द आते ही खपड़ैल मकान, पगडंडी, बच्चों की कोलाहल और मवेशी आदि से भरी किसी ऐसे स्थान की तस्वीर हमारे सामने आ जाती है, जहां लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं और पर्व-त्योहार मनाते हैं। वैसे गांव की परिभाषा ही है, जहां लोग एक
खूंटी जिले का ऐसा गांव, जहां नहीं रहता कोई इंसान


खूंटी जिले का ऐसा गांव, जहां नहीं रहता कोई इंसान


खूंटी जिले का ऐसा गांव, जहां नहीं रहता कोई इंसान


खूंटी, 17 दिसंबर (हि.स.)। गांव शब्द आते ही खपड़ैल मकान, पगडंडी, बच्चों की कोलाहल और मवेशी आदि से भरी किसी ऐसे स्थान की तस्वीर हमारे सामने आ जाती है, जहां लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं और पर्व-त्योहार मनाते हैं। वैसे गांव की परिभाषा ही है, जहां लोग एक साथ रहते हैं लेकिन सरकारी दस्तावेज में ऐसे कई गांव हैं, जहां कोई इंसान नहीं रहता। वहां के खेतों में दूसरे गांव के लोग खेती करते हैं।

सरकारी भाषा में ऐसे गांव को बेचिरागी गांव कहते हैं। ऐसा गांव जहां चिराग जलाने वाला काई न हो। ऐसा ही एक बेचिरागी गांव है खूंटी जिले के रनिया प्रखंड का बिरहोर चुआं। सरकारी दस्तावेज में इस गांव को राजस्व गांव का दर्जा प्राप्त है लेकिन आबादी शून्य है। यहां कोई घर नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले उस गांव में बिरहोर जनजाति के लोग रहते थे। बिरहारों को आमतौर पर घुमंतू माना जाता है, जो कुछ ही दिनों में अपना स्थान बदल देते हैं। दशकों पहले यहां आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोग रहते थे लेकिन धीरे-धीरे वहां के लोग गांव छोड़कर कहीं चले गये।

आसपास के गांव वाले बताते हैं कि बिरहोर एक चुंआ का उपयोग पानी पीने और अन्य कामों के लिए करते थे। उन्हीं के नाम पर गांव का नाम बिरहोर चुंआ पड़ा। आज भी वह चुआं विद्यमान है। गांव के बिराहोर कहां गये और क्यों नहीं लौटे, इस संबंध में कोई कुछ नहीं बता पाता है। बिरहोर चुंआ गांव में एक आम के पेड़ के नीचे उनकी कब्रगाह आज भी मौजूद है। ग्रामीण बताते हैं कि कब्रगाह में मिट्टी के बर्तन में शवों के कंकाल हैं। इसके अलावा किसी भी प्रकार के चिह्न उपलब्ध नहीं हैं। ग्रामीण भी गांव के संबंध में कुछ नहीं बता पाते हैं।

सरकारी अधिकारी सिर्फ इतना कहते हैं कि बिरहोर चुंआ नाम का गांव तो है लेकिन आबादी नहीं होने के कारण सभी जगह बेचिरागी के रूप में रिपोर्ट भेजी जाती है। गांव के नाम से कोई सरकारी योजना भी नहीं बनती है। जनगणना में भी जनसंख्या शून्य दर्शायी जाती जाता है। जयपूर के ग्राम प्रधान और सेवानिवृत्त शिक्षक एरियल संजय कंडुलना कहते हैं कि बिरहोर रस्सी और ओखली बनाकर बेचते थे। बंदर पकड़ा करते थे। माना जाता है कि उनका रोजगार नहीं चलने के कारण उन्होंने गांव छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि बड़े-बुजूर्ग बताया करते थे कि बिरहोर समुदाय के लोग छपरी बनाकर रहते थे। वे कहां चले गये। इसकी किसी को जानकारी नहीं है। रनिया प्रखंड की प्रमुख नेली डहंगा ने कहा कि बिरहोर चुंआ दस्तावेजों में राजस्व गांव के रूप में दर्ज है। बिरहोर समुदाय के पलायन कर जाने के संबंध में किसी को कोई जानकारी नहीं है।

खूंटी जिले में दो गांव हैं बेचिरागी

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, खूंटी जिले में दो बेचिरागी गांव हैं। एक रनिया प्रखंड का बिरहोर चुंआ, जिसकी आबादी शून्य है। क्षेत्रफल 207.75 हेक्टेयर है। इसी प्रकार खूंटी प्रखंड के छोटा बांडी के नाम से एक ग्राम है, जहां कोई भी निवास नहीं करता है। छोटा बांडी का क्षेत्रफल 18 हेक्टेयर है।

रनिया प्रखंड में ही एक ऐसा गांव है, जिसमें सिर्फ एक ही परिवार निवास करता है। गांव का नाम चेंगरे है, जिसका कुल क्षेत्रफल 87 हेक्टेयर है। गांव में एक ही परिवार निवास करता है, जिसमें कुल नौ सदस्य हैं। इनमें पांच पुरुष और चार महिलाएं हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / अनिल मिश्रा