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कोटा, 17 दिसंबर (हि.स.)। श्री फलौदी महिला मंडल सेवा समिति के तत्वावधान में राधाकृष्ण मंदिर, तलवंडी के पास स्थित अग्रसेन सभागार में तीन दिवसीय कथा का मंगलवार से शुभारंभ हुआ।
कार्यक्रम के प्रथम सोपान में आचार्य पं. संजय कृष्ण त्रिवेदी ने नरसी मेहता चरित्र का भावपूर्ण वर्णन किया। उन्होंने कहा कि नरसी का सम्पूर्ण जीवन द्वारिकाधीश की भक्ति में तल्लीन रहा। एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि भक्ति मार्ग पर चलते समय जब नरसी का हाथ मशाल की आग से झुलस गया, तब भगवान ने स्वयं आकर उनकी रक्षा की।
आचार्य त्रिवेदी ने आगे कहा कि लगभग 350 वर्ष पूर्व, गुजरात के जूनागढ़ में भक्त नरसी ने द्वारिकाधीश से मिलने का दृढ़ संकल्प लिया। पत्नी को आश्वस्त करके वह अकेले उत्तर दिशा में निकल पड़े। जंगल में सात दिन और सात रात तक उन्होंने महादेव और हनुमान की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उनसे पूछा, तुझे क्या चाहिए? इस पर नरसी ने समर्पित भाव से कहा, मैं लौकिक हूँ और आप अलौकिक। मुझे वही दीजिए जो आपको सबसे प्रिय है। महादेव ने उन्हें राग केदार प्रदान करते हुए पीतांबर पहनाकर आशीर्वाद दिया।
इस दौरान आचार्य ने मधुर भजन गोकुल को देखो, वृंदावन देखो रे, बंशी बाजे रे, श्याम संग राधा नाचे रे... प्रस्तुत किया, जिसे सुनकर सभी श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
आचार्य त्रिवेदी ने भक्ति के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जो भक्त भाव से भगवान के निकट होते हैं, दुनिया उनसे दूर हो जाती है। उन्होंने कहा, भक्ति में भाव, भजन और स्वरूप बदलने का प्रयास करें। जो भक्ति का उपहास उड़ाते हैं, उन्हें हंसने दें। जिस घर के बाहर तुलसी, गौमाता और भगवान का नाम लिखा हो, उस घर को पहचानने में भगवान को देर नहीं लगती।
उन्होंने आधुनिक जीवन शैली पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज कई घरों के बाहर कुत्ते से सावधान लिखा होता है, जिससे भगवान का प्रवेश वहां कैसे होगा? संस्कारों की कमी के कारण युवा बुजुर्गों के पास बैठने की बजाय मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। जहां भगवान का भजन चलता है, वहां दुख नहीं आता।
दहेज और संबंधों पर विचार
आचार्य त्रिवेदी ने विवाह समारोहों में दहेज प्रथा की निंदा की। उन्होंने कहा, आजकल मांगने के कारण रिश्ते खराब हो रहे हैं। समधि का अर्थ समान बुद्धि है, लेकिन अब बुद्धि लेन-देन पर केंद्रित हो गई है। उन्होंने भक्त नरसी के प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि जब नरसी अपनी बेटी नानी बाई के मायरे की मांगें पूरी करने में असमर्थ थे, तब द्वारिकाधीश ने उनकी सहायता की।
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द