उस्ताद जाकिर हुसैन : थम गई तबले की थाप
डॉ. नुपूर निखिल देशकर संगीत संसार में तबले को एक नया आयाम देने और अपनी कला से भारत को विश्वपटल पर पहचान दिलाने वाले तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन अब इस संसार में नहीं रहें। उनकी अद्वितीय प्रतिभा और साधना ने तबले को एक नई पहचान दिलाई। जाकिर हुसैन न
डॉ. नुपूर निखिल देशकर


डॉ. नुपूर निखिल देशकर

संगीत संसार में तबले को एक नया आयाम देने और अपनी कला से भारत को विश्वपटल पर पहचान दिलाने वाले तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन अब इस संसार में नहीं रहें। उनकी अद्वितीय प्रतिभा और साधना ने तबले को एक नई पहचान दिलाई। जाकिर हुसैन ने तबला वादन की कला अपने पिता और गुरु उस्ताद अल्ला रक्खा से सीखी। अल्ला रक्खा स्वयं भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान तबला वादकों में से एक थे। जाकिर ने इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए इसे वैश्विक मंच तक पहुंचाया। जाकिर हुसैन का संगीत तकनीकी दक्षता का एक उत्कृष्ट प्रदर्शन था।

जाकिर हुसैन ने शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ फ्यूजन म्यूज़िक और वर्ल्ड म्यूज़िक में भी तबले को स्थापित किया। शक्ति जैसे बैंड के साथ उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संगीत के अद्भुत संयोजन किए। उनकी उंगलियों की थाप से तबले पर उभरने वाली ध्वनियां संगीत प्रेमियों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ती थीं।

भारत सरकार ने जाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण, और 2023 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया। वर्ष 1990 में संगीत नाटक अकादमी ने सम्मानित किया। वर्ष 1999 में यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल एंडॉमेंट फ़ॉर द आर्ट्स की नेशनल हेरिटेज फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया था। यही नहीं इन्होंने ने अपने जीवन में कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शन किया। ग्रैमी अवॉर्ड्स सहित उन्होंने अनगिनत पुरस्कार जीते। उनका योगदान भारतीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाने में अमूल्य रहा। चाहे वह पंडित रविशंकर के साथ हो या जॉन मैकलॉघलिन जैसे अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ, जाकिर हुसैन ने हर बार अपनी प्रतिभा को नये रूप में स्थापित किया।

नौ मार्च 1951 को महान तबला वादक अल्लाह रखा के घर में जन्में जाकिर हुसैन को उनके पिता अल्ला रक्खा खान ने बचपन से ही ताल से बांध दिया इसलिए थोड़ा बड़े होते ही इन्होंने घर के बर्तनों को बचाना प्रारंभ कर दिया था। मात्र 3 वर्ष की आयु से ही जाकिर के पिता उन्हें पखावज पढ़ाने लगे थे। इसके बाद उन्होंने 11 वर्ष की आयु में अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट किया था। जाकिर हुसैन 12 वर्ष के थे तब वह अपने पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खान के साथ एक म्यूजिक कॉन्सर्ट में इंदौर में पहुंचे। वहां मंच पर प्रख्यात संगीतज्ञ पं. ओंकारनाथ ठाकुर ने उन्हें तबला बजाते हुए देखा। उनकी प्रस्तुति समाप्त होते ही पंडित जी ने आशीर्वाद स्वरूप जेब से पांच रुपये का नोट निकालकर उन्हें दिया और पूछा.......बेटा, मेरे साथ बजाओगे? और बस यहीं से जाकिर हुसैन के ताल का सफर शुरू हुआ और वह एक दिन उस्ताद जाकिर हुसैन बन गये।

जाकिर हुसैन ने 'इन कस्टडी', 'द मिस्टिक मस्सेर', 'हीट एंड डस्ट' आदि जैसी कई फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया है। मलयालम फिल्म 'वानप्रस्थम' के लिए उनकी रचना, जिसे प्रतिष्ठित कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया था, ने उन्हें विश्व स्तर पर ख्याति दिलाई। कुछ अन्य फिल्में जिनके लिए उन्होंने संगीत स्कोर पर काम किया है, उनमें 'एपोकैलिप्स नाउ', 'लिटिल बुद्धा', 'साज़', मिसेज अय्यर' और 'वन डॉलर करी', 'मिस्टर' आदि सम्मिलित हैं। वर्ष 1998 में आई फिल्म साज में दस गाने थे। इसका संगीत ज़ाकिर हुसैन, भूपेन्द्र हज़ारिका, राजकमल और यशवंत देव ने मिलकर दिया था। इसके दो गीत इस प्रकार है:-

क्या तुमने है कह दिया - कविता कृष्णमूर्ति (ज़ाकिर हुसैन) द्वारा गाया गया

फिर भोर भयी - देवकी पंडित (ज़ाकिर हुसैन) द्वारा गाया गया

जाकिर हुसैन ने स्वयं को फिल्मों के लिए तबला बजाने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने भारतीय संगीत में नये प्रयोग किए। उनके फिल्म संगीत में योगदान ने तबले और भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नई ऊंचाई दी। दिनांक 15 दिसंबर 2024 को जाकिर हुसैन ने इस संसार को अलविदा कह दिया। उनका निधन भारतीय और विश्व संगीत के लिए एक अपूरणीय क्षति है लेकिन उनकी कला और धुनें हमेशा जीवित रहेंगी। उनकी थापों में छिपी कहानी और उनकी ध्वनियों में बहता संगीत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी