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-प्राग्ज्योतिषपुर साहित्य उत्सव 2024 के दूसरे दिन कई प्रमुख विषयों हुई परिचर्चाएं
गुवाहाटी, 14 दिसंबर (हि.स.)। तीन दिवसीय प्राग्ज्योतिषपुर साहित्य उत्सव 2024, जो साहित्य, संस्कृति और बौद्धिक संवाद का उत्सव है, गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में जारी है। इस उत्सव की खासियत रही प्राग्ज्योतिषपुर साहित्य पुरस्कार 2024 की घोषणा और सांस्कृतिक व सामाजिक विषयों पर आधारित रोचक परिचर्चाएं।
प्राग्ज्योतिषपुर साहित्य पुरस्कार 2024 वरिष्ठ नेपाली भाषा के लेखक विद्यापति दहाल को उनकी भाषा, वेदांत और लोक जीवन पर आधारित साहित्यिक योगदान के लिए दिया जाएगा। वहीं, प्राग्ज्योतिषपुर युवा साहित्य पुरस्कार 2024 शिवसागर के सुप्रकाश भुइयां को उनकी गहन कथा रचनाओं और सामाजिक-राजनीतिक निबंधों के लिए प्रदान करने की घोषणा हुई है। ये पुरस्कार 15 दिसंबर को उत्सव के समापन समारोह में प्रदान किए जाएंगे, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. अमरज्योति चौधरी उपस्थित रहेंगे।
प्राग्ज्योतिषपुर साहित्य उत्सव 2024 दूसरे दिन के कार्यक्रम में चार प्रमुख परिचर्चाएं आयोजित की गईं, जिनमें विरासत, संस्कृति, पत्रकारिता और सिनेमा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। इन सत्रों में विशेषज्ञों ने अपने दृष्टिकोण साझा करते हुए असमिया समाज और संस्कृति को बेहतर समझने में योगदान दिया।
पहली परिचर्चा विरासत और सांस्कृतिक पहचान की तलाश: डिजिटल निर्भरता विषय पर केंद्रित थी, जिसका संचालन कॉटन यूनिवर्सिटी की अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. राखी कलिता मोरल ने किया। इस सत्र में सांस्कृतिक विरासत को प्रौद्योगिकी के माध्यम से संरक्षित करने पर चर्चा हुई।
डॉ. ध्रुवज्योति बोरा, श्रीमंत शंकरदेव स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति, ने क्षेत्रीय भाषाओं को सांस्कृतिक प्रामाणिकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण बताया। डॉ. भास्करज्योति शर्मा, अनुदोराम बरुवा भाषा, कला और संस्कृति संस्थान के सहायक प्रोफेसर, ने परंपराओं के पहचान निर्माण में भूमिका और प्रौद्योगिकी की मदद से उन्हें संरक्षित करने पर जोर दिया। इसी सत्र में डॉ. अरूप नाथ, तेजपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं के सहायक प्रोफेसर, ने कहा, कुछ परंपराएं हमारे लिए दृश्य और मूर्त होती हैं। ये इतिहास के चिह्न हैं। लेकिन कुछ अदृश्य परंपराएं भी हैं जिन्हें केवल महसूस किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका के गीतों की धुनें हमारी विरासत का हिस्सा हैं।
दूसरी परिचर्चा असम के विविध समाज में ब्रह्मपुत्र की भूमिका पर आधारित थी। इसका संचालन पद्मश्री से सम्मानित अरूप कुमार दत्ता ने किया। इस सत्र में ब्रह्मपुत्र नद के असम के सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में महत्व पर चर्चा हुई। इंजीनियर और शोधकर्ता प्रदीप भुइयां ने अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे बांधों से होने वाले पर्यावरणीय और सांस्कृतिक खतरों के बारे में आगाह किया। बोडो साहित्य सभा के उपाध्यक्ष प्रशांत बोडो ने प्राचीन प्राग्ज्योतिषपुर से लेकर आधुनिक असम तक ब्रह्मपुत्र के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला।
तीसरी परिचर्चा बदलता मीडिया परिदृश्य: विश्वसनीयता और प्रमाणिकता विषय पर आधारित थी। इसका संचालन प्रशान्त ज्योति बरुवा, असम ट्रिब्यून के कार्यकारी संपादक, ने किया। वरिष्ठ पत्रकार रूपम बरुवा ने सोशल मीडिया की तात्कालिकता के बीच तथ्यात्मक सटीकता बनाए रखने की चुनौतियों पर चर्चा की। प्रख्यात पत्रकार और लेखक नव ठाकुरिया ने सच्चाई पर आधारित रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर जोर दिया और गलत सूचनाओं के कारण समाचार मीडिया में घटते विश्वास के खतरे को रेखांकित किया।
चौथी परिचर्चा का विषय था मनोरंजन से परे: समाज में सिनेमा की भूमिका।
इस सत्र का संचालन फिल्म समीक्षक और कवियित्री अपराजिता पुजारी ने किया। वरिष्ठ फिल्म निर्माता अतुल गंगवार ने सिनेमा की सामाजिक बदलाव लाने की शक्ति पर चर्चा की। अभिनेता कपिल बोरा ने फिल्मों के जरिए सार्थक संदेश देने के महत्व पर जोर दिया। प्रखर वक्ता देवांग तायेंग और शिक्षाविद सम्राट बोरा ने इस बात पर चर्चा की कि सिनेमा कैसे नई विचारधाराएं प्रस्तुत करता है और सामाजिक प्रगति को प्रभावित करता है।
यह उत्सव असम की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने के साथ-साथ समकालीन चुनौतियों पर चर्चा करते हुए बौद्धिक और रचनात्मक संवाद का केंद्र बना हुआ है।
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय