प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव का शुभारंभ 
- सैकड़ों साहित्य प्रेमियों ने दिखाया उत्साह गुवाहाटी, 13 दिसंबर (हि.स.)। तीन दिवसीय प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव 2024 का शुभारंभ शुक्रवार को गुवाहाटी स्थित श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र परिसर में हुआ। इस महोत्सव में सैकड़ों साहित्य प्रेमियों ने हिस
प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव की तस्वीर ।


प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव की तस्वीर ।


- सैकड़ों साहित्य प्रेमियों ने दिखाया उत्साह

गुवाहाटी, 13 दिसंबर (हि.स.)। तीन दिवसीय प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव 2024 का शुभारंभ शुक्रवार को गुवाहाटी स्थित श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र परिसर में हुआ। इस महोत्सव में सैकड़ों साहित्य प्रेमियों ने हिस्सा लिया। 15 दिसंबर तक चलने वाले इस महोत्सव के पहले दिन प्रतिभागियों की जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली।

उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में असम महिला विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और शोधकर्ता-अकादमिक डॉ. मालिनी गोस्वामी मौजूद थीं। जबकि, प्रमुख स्तंभकार, पत्रकार और अर्थशास्त्री स्वामीनाथन गुरुमूर्ति ने मुख्य भाषण दिया। कार्यक्रम की शुरुआत शास्त्रीय संगीत कलाकार विद्यासागर द्वारा भावपूर्ण बोरगीत प्रस्तुति के साथ हुई।

आयोजन समिति, शंकरदेव शिक्षा और शोध फाउंडेशन के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) राणा प्रताप कलिता ने समारोह की शोभा बढ़ाई। अन्य प्रमुख अतिथियों में प्रसिद्ध लेखक तरुण बोरो, आयोजन समिति के अध्यक्ष, प्रागज्योतिषपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर स्मृति कुमार सिन्हा और दो विशेष अतिथि वक्ता—वकील-लेखक जे. साई दीपक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व प्रसिद्ध लेखक आनंद रंगनाथन शामिल थे।

“जड़ों की तलाश में” विषय पर आधारित प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव के दूसरे संस्करण की शुरुआत वक्ताओं द्वारा भारत की समृद्ध विरासत और ज्ञान परंपराओं को खंगालने की आवश्यकता पर गहन विचार-विमर्श के साथ हुई। स्वागत भाषण में लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने एक सैन्य अधिकारी के दृष्टिकोण से महाबीर लचित के साहस और रणनीतियों की प्रासंगिकता का विश्लेषण किया और इन ऐतिहासिक कथाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के महत्व पर जोर दिया।

अपने संबोधन में डॉ. मालिनी गोस्वामी ने प्राचीन से आधुनिक काल तक असमिया साहित्य की यात्रा को रेखांकित किया और क्षेत्र की भारत की साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपराओं से गहरी जुड़ाव पर प्रकाश डाला।

“संस्कृति के माध्यम से विकास” विषय पर मुख्य भाषण देते हुए, स्वामीनाथन गुरुमूर्ति ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की विकृत छवि पर गंभीर चर्चा की। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष बाद भी भारत स्वतंत्र सोच विकसित नहीं कर पाया है। गुरुमूर्ति ने भारत को समझने के लिए अपनाई गई पश्चिमी विश्लेषणात्मक दृष्टि पर सवाल उठाए और भारतीय शिक्षा प्रणाली को रोजगार-उन्मुख मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए दोषी ठहराया, जिसने उद्यमशीलता की भावना को दबा दिया है।

अपने समापन भाषण में, आयोजन समिति के अध्यक्ष तरुण बोडो ने आजीविका के साथ-साथ साहित्य की अनिवार्य भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि साहित्य मानसिक शांति प्रदान करता है।

उद्घाटन सत्र के बाद तीन व्याख्यान सत्र आयोजित किए गए। प्रख्यात कानूनी विशेषज्ञ और लेखक जे. साई दीपक ने “संविधान और सभ्यता” विषय पर गहन वक्तव्य दिया। जबकि, आनंद रंगनाथन ने “ट्रेडमिल से ट्रैवलैटर तक: भारत 2047” पर विश्लेषण प्रस्तुत किया। प्रमुख अर्थशास्त्री और इतिहासकार संजीव सान्याल ने “ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन का महत्व” विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।

विशेष रूप से, महोत्सव के तीन दिनों में कई पैनल चर्चाएं और कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी, जिनका समापन 15 दिसंबर को होगा। कल की चर्चाओं में “विरासत और सांस्कृतिक पहचान: प्रौद्योगिकी की भूमिका,” “असम के विविध समाज में ब्रह्मपुत्र नद की भूमिका,” “पत्रकारिता का रूपांतरण: विश्वसनीयता और भरोसेमंदता,” और “मनोरंजन से परे: समाज में सिनेमा की भूमिका” जैसे विषय शामिल होंगे।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश