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बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में हिंदी संसद का हुआ आयोजन, कई कुलपतियों ने लिया हिस्सा
भारतीय हिंदी परिषद के 47वें अधिवेशन के दूसरे दिन हिंदी विभाग के अध्यक्षों की हुई बैठक
परिषद की आमसभा की बैठक ओरछा के केशव भवन में हुई आयोजित
झांसी, 30 नवंबर (हि.स.)। भारतीय हिंदी परिषद के 47वें अधिवेशन और भारतीय ज्ञान परंपरा और हिंदी विषयक त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन हिंदी संसद का आयोजन किया गया। संसद में देश के 5 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने हिस्सा लिया। हिन्दी संसद कार्यक्रम को संबोधित करते समय बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि यदि कोई हिन्दी का विद्यार्थी किसी दूसरी भाषा सीखकर पर्यटन के क्षेत्र में बुन्देलखण्ड की गाथा को बताएगा तो पर्यटन के माध्यम से बुन्देलखण्ड को दुनिया में पहचान मिलेगी। इसे यदि पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा तो निश्चित रूप से उसका लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी के प्रोफेसर तो शब्दों के जादूगर होते हैं वह यदि मैनेजमेंट, ह्यूमन रिर्सोस आदि पाठ्यक्रम में शामिल करें तो हिन्दी वाले विद्यार्थी काउंसलिंग और सोशल मीडिया के लिए कंटेंट राईटिंग जैसे विषयों पर काम कर सकते हैं।
पूर्व कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का फार्मूला हिन्दी के प्रतिकूल है ऐसे में हमारी जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हैं। पिछले दिनों मुझसे दक्षिण के एक व्यक्ति ने पूछा कि हमें हिन्दी जबर्दस्ती सिखाएंगे क्या ? इस पर मैंने जवाब दिया कि जबर्दस्ती नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि आर्य कहीं से नहीं आए बल्कि वह यहां से बाहर गए हैं। हमारे कई सारे शब्द इसीलिए फारसी, तुर्की और लेटिन में भी हैं। तमिल के बहुत से भोजपुरी में हैं। उत्तर-दक्षिण का विभेदीकरण कर दिया गया। उत्तर-दक्षिण के लोगों का एक विशेषज्ञ ने 4-5 हजार डीएनए का मेल करवाया। सबका डीएनए एक है। हिन्दी वाले लोगों को पूर्वोत्तर और दक्षिण की भाषाएं सीखनी होंगी।
प्रो. शिशिर पांड ने कहा कि क्षेत्रीय और जनपद के लेखकों के लेखन कम महत्वपूर्ण नहीं हैं भले ही वह प्रकाशित नहीं हुए हैं। 1900 के करीब पत्र-पत्रिकाओं की बाढ़ आई और उनमें से कई का वर्तमान में शताब्दी वर्ष चल रहा है। प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि अंग्रेजी के सामने हिन्दी पाठ्यक्रम के सामने कई चुनौतियां थी। मान्यता नहीं मिलती थी। साथ ही दक्षिण की भाषाओं से हमारा संबंध मजबूत होना चाहिए। दक्षिणवालों का कहना है कि हम उन्हें महत्व नहीं देते हैं। हम उनके लेखन और उत्कृष्ट कार्य का कहीं भी जिक्र नहीं करते हैं। उनकी रचनाओं का भी जिक्र होना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो पिछड़ जाएंगे। प्रो. चक्रधर त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अंत में अतिथियों ने शोधार्थियों और शिक्षकों के सवालों के जवाब दिए।
कार्यक्रम में बुन्देलखण्ड और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, जगदगुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट के प्रो. शिशिर पांडे, ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. चक्रधर त्रिपाठी, भारतीय हिन्दी परिषद के सभापति प्रो. पवन अग्रवाल, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के हिन्दी विभाग अध्यक्ष व अधिवेशन के संयोजक प्रो. मुन्ना तिवारी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन भारतीय हिन्दी परिषद, प्रयागराज के प्रधानमंत्री प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन में स्थित कुलपति कमेटी कार्यालय में देश विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग के 22 अध्यक्षों ने हिस्सा लिया। बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पाठ्यक्रम में कौशल विकास से संबंधित कोर्स शामिल करने पर चर्चा की गई। हिंदी भाषा शिक्षण के साथ पत्र लेखन, निबंध लेखन पत्रकारिता, अनुवाद आदि पाठ्यक्रमों के साथ ही ई-शिक्षण डिजाइनिंग, आभाषी शिक्षण, प्रौद्योगिकी, आंकिक समावेश, ज्ञान-विज्ञान, कृत्रिम बुद्धि, मानवीय उपागम, साइबर विमर्श, वेब पत्रकारिता, रंग मंच विज्ञान, पटकथा और सृजनात्मक लेखन को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने पर चर्चा की गई। क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्धन के लिए एक सेमेस्टर जिस क्षेत्र में यूनिवर्सिटी हो उस क्षेत्र के पठन पर जोर दिया जाएगा। भारतीय ज्ञान परंपरा को अक्षुण रखने के लिए भी काम किया जाएगा।
हिंदी विभाग में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीन समानांतर सत्रों में प्रो. हिमांशु सेन, प्रो. सुधीर कुमार सिंह, प्रो. मंजुला यादव, डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता, डॉ. ममता तिवारी, प्रो. नीलम राठी, प्रो. पठान रहीम खान, प्रो. माधुरी यादव, प्रो. पुनीत बिसारिया, डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह, प्रो. श्रुति, पंडित विष्णुकांत शुक्ला, प्रो. हरिकृष्ण तिवारी, प्रो. राजेश चंद्र पांडे, प्रो. ऊषा पाठक , प्रो. रचना विमल, प्रो. उमेश कुमार सिंह, डॉ. अरुण कुमार वर्मा, प्रो. सर्वेश कुमार सिंह,प्रो. अपर्णा, प्रो. सुनीता शर्मा आदि ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
शाम को ओरछा के केशव भवन में भारतीय हिंदी परिषद की आम सभा आयोजित की गई। इस सभा में हिंदी के विकास के लिए ले गए सभी प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पारित किया गया। देश भर के विद्वानों को ओरछा का भ्रमण कराया गया. सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। बुंदेली राई और राम कथा के मंचन ने अतिथियों को किया आनंदित। इस अवसर पर अजय शंकर तिवारी, आकांक्षा सिंह, प्रीति शिवहरे , ऋचा सेंगर, रजनीश, ऋचा गुप्ता, गरिमा, डॉ. अचला पाण्डेय, डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी, डॉ. विपिन प्रसाद, डॉ. प्रेम लता श्रीवास्तव, डॉ. सुधा दीक्षित, डॉ. शैलेन्द्र तिवारी, डॉ. आशीष दीक्षित, डॉ. राम नरेश देहुलिया, डॉ. राघवेन्द्र द्विवेदी, आशुतोष शर्मा, जोगेंद्र सिंह, डॉ. द्युति मालिनी, डॉ. रेनू शर्मा, डॉ. सुनीता वर्मा , प्रियांशु गुप्ता समेत बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया