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मशहूर भारतीय अभिनेत्री और एक्टिविस्ट शबाना आजमी इस समय फ्रांस में हैं, जहां वो 3 कॉन्टिनेंट्स के 46वें फेस्टिवल में शामिल हो रही हैं। इस फेस्टिवल में उनके 50 साल के शानदार करियर को एक स्पेशल रेट्रोस्पेक्टिव के जरिए सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस रेट्रोस्पेक्टिव में उनकी कुछ आइकॉनिक फिल्में दिखाई जा रही हैं, जो उनके शानदार सफर और ग्लोबल सिनेमा पर उनके प्रभाव को हाइलाइट करती हैं।
इस रेट्रोस्पेक्टिव में शबाना आज़मी की कुछ सबसे प्रशंसित फ़िल्में शामिल हैं, जिनमें अंकुर (1974), मंडी (1983), मासूम (1983) और अर्थ (1982) शामिल हैं। इनमें से हर फ़िल्म में एक अभिनेत्री के तौर पर उनकी जबरदस्त रेंज और टैलेंट को देखा गया है। शबाना आजमी ने आज सोशल मीडिया पर एक खास पल शेयर किया है। उन्हें एक वीडियो पोस्ट की है, जिसमें फेस्टिवल में उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन मिल रहा है। अपने संदेश में उन्होंने दर्शकों का शुक्रिया अदा किया है और उनको गर्मजोशी भरे रिस्पॉन्स के लिए अपना आभार जताया है।
नैनटेस में ये रेट्रोस्पेक्टिव दिखता है कि शबाना आजमी के काम को फ्रेंच फिल्म जगत में कितनी वैल्यू मिलती है। उनकी फिल्में वहां के दर्शकों के साथ काफी सालों से कनेक्ट होती आ रही हैं। इससे पहले भी उन्हें सेंटर पोम्पीडौ और सिनेमैथेक जैसी जानी मानी जगहों का सम्मान मिला है। नैनटेस फेस्टिवल देस 3 महाद्वीपों में उनकी फिल्म गॉडमदर (1999) की ओपनिंग नाइट फीचर रही थी।
इस साल शबाना आजमी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के अपने दमदार प्रदर्शन से दर्शकों को प्रभावित कर रही है। रेट्रोस्पेक्टिव के साथ-साथ, शबाना आजमी को हाल ही में मुंबई फिल्म फेस्टिवल में एक्सीलेंस इन सिनेमा अवॉर्ड भी मिला है, जो उनके 50 साल के फिल्म इंडस्ट्री के सफर को सलाम करता है। शबाना आज़मी, जो 5 बार बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीत चुकी हैं, ने अलग-अलग शैलियों और भाषाओं में काम किया है। उनका काम भारत और दुनिया भर में काफी सराहा जाता है।
शबाना आज़मी ने अपने करियर में कई अवॉर्ड्स जीते हैं, जिनमें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भी शामिल हैं : पद्म श्री (1988) और पद्म भूषण (2012)। अभिनय और सामाजिक कार्य के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें भारतीय सिनेमा और उसके बहार भी एक अत्यधिक सम्मानित व्यक्तित्व बना दिया है।
उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा है, यह एक बहुत ही शानदार अनुभव था। स्टैंडिंग ओवेशन और सम्मान को गहराई से महसूस हो रहा था। युवा फिल्म मेकर्स से बात करना प्रेरणादायक था, जिन्होंने बहुत कुछ का त्याग किया है-अपने घर, यहाँ तक कि अपनी माँ के गहने भी बेच दिए हैं। वे सब कुछ जोखिम में डालते हैं, यह जानते हुए कि अगर उनकी फ़िल्में असफल होती हैं, तो वे सड़क पर आ सकते हैं, फिर भी उनका पूरा जीवन एक चीज़ के इर्द-गिर्द घूमता है: सिनेमा।
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हिन्दुस्थान समाचार / लोकेश चंद्र दुबे