राष्ट्रीय अस्मिता, सभ्यता, संस्कृति का संवर्द्धन आवश्यक
हृदयनारायण दीक्षित संविधान भारत का राजधर्म है। भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक (26 नवंबर, 1949) में डॉक्टर आम्बेडकर के प्रस्ताव पर मतदान हुआ और संविधान पारित हो गया। संविधान ही राष्ट्र का धारक और राज्य व्यवस्था का धर्म बना। भारत में संविधान ही सर्व
हृदयनारायण दीक्षित


हृदयनारायण दीक्षित

संविधान भारत का राजधर्म है। भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक (26 नवंबर, 1949) में डॉक्टर आम्बेडकर के प्रस्ताव पर मतदान हुआ और संविधान पारित हो गया। संविधान ही राष्ट्र का धारक और राज्य व्यवस्था का धर्म बना। भारत में संविधान ही सर्वोत्तम सत्ता है। हम भारत के लोगों को वाक्स्वातंत्र्य और विधि के समक्ष समता सहित सभी मौलिक अधिकार संविधान से मिले। जन गण मन ने स्वाभाविक ही समता, समरसता और संपन्नता के रंगीन सपने देखे। जन गण मन का भाग्य विधाता संविधान है। नागरिक संविधान के प्रति श्रद्धालु हैं। संविधान 26 नवम्बर 1949 के दिन बनकर तैयार हुआ। कृतज्ञ राष्ट्र 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाता है। दो दिन बाद संविधान दिवस है।

संविधान ही राष्ट्र जीवन का मुख्य धारक होता है। भूमि, जन और संप्रभु शासन से ही राष्ट्र नहीं बनते। इनसे नेशन बनते हैं और नेशन व राष्ट्र में बड़ा अंतर है। राष्ट्र का आधार संस्कृति है। संविधान निर्माता सांस्कृतिक क्षमता से परिचित थे। इसलिए संविधान की हस्तलिखित प्रति में सांस्कृतिक राष्ट्रभाव वाले 23 चित्र हैं। मुख पृष्ठ पर राम और कृष्ण हैं। भाग 1 में सिन्धु सभ्यता की स्मृति वाले मोहनजोदड़¨ काल की मोहरों के चित्र और भाग 2 नागरिकता वाले अंश में वैदिक काल के गुरुकुल आश्रम का दिव्य चित्र। भाग तीन मौलिक अधिकार वाले पृष्ठ पर श्रीराम की लंका विजय व भाग चार में राज्य के नीति निदेशक तत्वों वाले पन्नों पर कृष्ण अर्जुन उपदेश वाले चित्र थे। भाग 5 में महात्मा बुद्ध, भाग 6 में स्वामी महावीर और भाग 7 में सम्राट अशोक। भाग 8 में गुप्त काल, भाग 9 में विक्रमादित्य, भाग 10 में नालंदा विश्वविद्यालय, भाग 11 में उड़ीसा का स्थापत्य, भाग 12 में नटराज, भाग 13 में भागीरथ द्वारा गंगा अवतरण, भाग 14 में मुगलकालीन स्थापत्य, भाग 15 में शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह, भाग 16 में महारानी लक्ष्मीबाई, भाग 17 व 18 में क्रमशः गांधी जी की दांडी यात्रा व नोआखली दंगों में शांति मार्च, भाग 19 में नेताजी सुभाष, भाग 20 में हिमालय, भाग 21 में रेगिस्तानी क्षेत्र व भाग 23 में लहराते हिन्द महासागर की चित्रावली आनंदित करती है।

संविधान पारण के बाद अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने कहा, ”अब सदस्यों को संविधान की प्रतियों पर हस्ताक्षर करने हैं। एक हस्तलिखित अंग्रेजी की प्रति है, इस पर कलाकारों ने चित्र अंकित किए हैं, दूसरी छपी हुई अंग्रेजी व तीसरी हस्तलिखित हिंदी की।” (संविधान सभा कार्यवाही खण्ड 12, पृष्ठ 4261) चित्रमय प्रति दर्शनीय है। संस्कृति और इतिहास के छात्र संविधान की चित्रमय प्रति से प्रेरित होते हैं। राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा के आखिरी भाषण (26.11.1949) में कहा, ”संविधान किसी बात के लिए उपबंध करे या न करे, देश का कल्याण उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा, जो देश पर शासन करेंगे।” आखिरी भाषण में डॉक्टर आम्बेडकर ने प्राचीन परंपरा की याद दिलाते हुए कहा, ”एक समय भारत गणराज्यों से सुसज्जित था। यह बात नहीं है कि भारत पहले संसदीय प्रक्रिया से अपरिचित था।” डॉ० आम्बेडकर ने राष्ट्र शब्द पर काफी जोर दिया। अमेरिकी कथा सुनाई, ”अमेरिकी प्रोटेस्टेंट गिरिजाघर ने पूरे देश के लिए प्रार्थना प्रस्तावित की कि ‘हे ईश्वर हमारे राष्ट्र को आशीर्वाद दो‘। अमेरिकी जनता ने आपत्तियां दर्ज की।

अमेरिका राष्ट्र नहीं था। प्रार्थना संशोधित हुई, ”हे ईश्वर इन संयुक्त राज्यों को आशीर्वाद दो।” यहाँ (भारत) जातियां हैं। राष्ट्र के रूप में होने के लिए हमें इन पर विजय प्राप्त करना है। उन्होंने कहा, ”मेरा मस्तिष्क भविष्य चिन्ता से परिपूर्ण है। क्या भारत अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने में कामयाब होगा? जाति और मत मतान्तर राजनैतिक पक्ष बन रहे हैं। क्या भारतीय मत मतान्तरों को राष्ट्र से श्रेष्ठ मानेंगे या राष्ट्र को मत मतान्तरों से ऊपर?” उन्होंने आर्य आक्रमण की कथा को झूठ बताया। दुनिया के अन्य विद्वानों की तरह उन्होंने भी ऋग्वेद को आधार बनाया। उपनिषद जांचे, ब्राह्मण ग्रन्थ पढ़े, महाभारत पढ़ा। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र‘ जांचा। आर्य-अनार्य और ब्राह्मण-शूद्र जैसे विभाजक शब्दों को जांचते हुए उन्होंने ‘हू वर शूद्राज‘ (शूद्र कौन थे) लिखी। यूरोपीय विद्वान आर्यों को बाहर से आई नस्ल मानते थे। डॉ० आम्बेडकर ने ऋग्वेद के हवाले बताया, ”ये शब्द नस्ल के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुए। (डॉ० आम्बेडकर राइटिंग्स एन्ड स्पीचेज, खण्ड 7, पृष्ठ 70) फिर आर्यों के मूल स्थान के बारे में कहा, ”भारत से बाहर आर्यों के मूल स्थान का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नहीं खाता। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदियों के प्रति आत्मस्नेह संबोधन नहीं कर सकता। (वही) उन्होंने दासों और आर्यों को एक ही राष्ट्र परिवार का अंग बताते हुए ऋग्वेद के एक मंत्र का हवाला दिया, ”इन्द्र ने अपनी शक्ति से दासों को आर्य बनाया।” यहां वैदिक काल से ही एक परिपूर्ण गणव्यवस्था थी। गणेश गणपति थे। ऋग्वेद में ”गणानां त्वां गणपतिं” आया है। मार्क्सवादी चिन्तक डॉक्टर रामविलास शर्मा ने लिखा, ”गण पुराना शब्द है, यह पुरानी समाज व्यवस्था का द्योतक है। गण और जन ऋग्वेद में पारिभाषिक हो गए हैं।” महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने भीष्म से आदर्श गणतंत्र पूछा। भीष्म ने (शांति पर्व 107.14) बताया कि भेदभाव से ही गण नष्ट होते हैं। उन्हें संघबद्ध रहना चाहिए। गण के लिए बाहरी की तुलना में आंतरिक संकट बड़ा होता है। ”आभ्यन्तरं रक्ष्यम्सा बाह्यातो भयम्” वाह्य उतना बड़ा नहीं।

भारतीय गणतंत्र अमर है लेकिन राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है। न्यायपालिका संविधान की जिम्मेदार संरक्षक है। न्यायपीठ ने प्रशंसनीय फैसले किए हैं। अदालतों में लंबित लाखों मुकदमें ”न्याय में देरी से अन्याय के सिद्धांत” की गिरफ्त में हैं। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य देता है। अनुच्छेद 20 अन्य बातों के अलावा, ”किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को अपने ही विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य करने से रोकता” है। अनुच्छेद 21 ”जीवन का अधिकार” है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक वाद में ”न्यूनतम जीविका एवं आश्रय के साथ-साथ मानवीय सम्मान, आदर को भी इस अधिकार का हिस्सा बताया है।” मौलिक अधिकारों पर भारत को गर्व है। संविधान दिवस स्मरणीय है। प्रेरक है। इसके बाद गणतंत्र दिवस 26 जनवरी का राष्ट्रीय महोत्सव।

कृषि, विकास, गोवंश संवर्द्धन राज्य के नीति निदेशक संवैधानिक तत्व हैं। महाभारतकार ने गणतंत्र की सभा समिति (संसदीय व्यवस्था) के सदस्य की अनिवार्य योग्यता बताई, ”न नः स समितिं गच्छेत यश्च नो निर्वपेत्कृषिम” जो खेती नहीं करता वह सभा में प्रवेश न करे।” ऋग्वैदिक काल में ऋषि भी कृषि कार्य करते थे। धर्मांतरण के विरुद्ध सरकार सक्रिय है। कॉमन सिविल कोड नीति निदेशक तत्व है। इसे लागू कराना आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने जम्मू-कश्मीर विषयक अनुच्छेद 370 को अस्थाई बनाया था। इसकी समाप्ति का तरीका भी उन्होंने लिख दिया था। मतदान पवित्र अनुष्ठान है। यह भारतीय नागरिक का अधिकार है। हिन्दुत्व इस देश का प्राणतत्व है, लेकिन सांप्रदायिक है। अलगाववादी और द्विराष्ट्रवादी देशतोड़क हैं तो भी सेकुलर हैं। अल्पसंख्यकवाद राष्ट्र के लिए क्षतिकारक है। संविधान और कानून में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा नहीं है। राष्ट्रीय अस्मिता, सभ्यता, संस्कृति का संवर्द्धन आवश्यक है।

(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश