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-आयुर्वेद पर कई पुस्तक लिखने वाले दयालजी को किया गया था पद्मश्री से सम्मानित
मोरबी, 14 नवंबर (हि.स.)। आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले पद्मश्री दयालजी मुनि का गुरुवार को मोरबी जिले के टंकारा में निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे। उन्होंने 4 वेदों का गुजराती में भाषांतरण किया था, जिसकी वजह से उनकी देश-विदेश में ख्याति थी।
टंकारा के साधारण परिवार के मावजीभाई दरजी के पुत्र दयालजी मुनि का जन्म 28 दिसंबर, 1934 को हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे चिकित्सक, आयुर्वेदाचार्य, प्रोफेसर, शिक्षक, शोधकर्ता, लेखक, संपादक, अनुवादक, समाज सुधारक समेत कई कार्य से जुड़े। बाद में वे जामनगर के आयुर्वेदिक कॉलेज से बतौर प्रोफेसर के रूप में रिटायर्ड हुए थे। इसके बाद वे फिर पैतृक गांव टंकारा में आ कर बस गए थे। आर्य समाज संस्था में वे मंत्री पद से जुड़कर संस्कार के साथ जीवन निर्माण के कार्य से जुड़े रहे। वर्षों तक आयुर्वेदिक चिकित्सालय में डाक्टर के रूप में उन्होंने निशुल्क सेवा दी।
उन्होंने आयुर्वेद विश्वविद्यालय की ओर से मान्यताप्राप्त 8 पुस्तकों का लेखन किया था। चारों वेद के 20397 मंत्रों समेत 7084 पन्ने की पुस्तक का संस्कृत से सरल गुजराती भाषा में अनुवाद करने जैसा भगीरथ कार्य किया। इसके अलावा आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती के आर्याभिविनय, वेदभाष्य, आत्मकथा, उपदेश मंजरी आदि ग्रंथों का गुजराती भाषा में अनुवाद किया था। भारत सरकार ने 9 मई, 2024 को उन्हें पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा की थी, लेकिन तबियत दुरुस्त नहीं रहने के कारण वे समारोह में शामिल नहीं हो सके थे। बाद में 31 मई, 2024 को मोरबी कलक्टर केबी झवेरी, एसपी राहुल त्रिपाठी और डीडीओ जेएस प्रजापति ने उनके घर जाकर पद्मश्री अवार्ड सौंपा था।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय