Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
सुरेश हिंदुस्तानी
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश की नई सरकार ने पुराने एजेंडे पर काम करना प्रारम्भ कर दिया है। इससे निश्चित ही यह संकेत मिलता है कि जिस अनुच्छेद 370 और 35ए के कारण कश्मीर को शेष भारत से अलग दिखने जैसी स्थिति थी, वैसी ही स्थिति पैदा करने का प्रयास नई सरकार यानी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस द्वारा किया जा रहा है। राज्य की नई सरकार का यह कदम पाकिस्तान के हौसले बढ़ाने वाला लगता है, क्योंकि पाकिस्तान अनुच्छेद 370 के कारण ही कश्मीर को अपना बताने का कुचक्र रचता रहा है। अनुच्छेद 370 के बहाने राज्य को मिले विशेष अधिकारों के चलते ही पाकिस्तान ने अपना नेटवर्क स्थापित किया था, जिसके कारण वहां के नागरिक भारतीय सेना के प्रति अलगाव का व्यवहार करते दिखाई दिए। उस समय पाकिस्तान परस्त आतंकी कश्मीर में युवाओं को भ्रमित करते रहते थे।
अब उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली प्रदेश की नई सरकार ने जम्मू-कश्मीर में फिर से अलगाव के बीज रोपित करने का काम किया है। जिसमें कांग्रेस की भी भागीदारी है। हालांकि कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है। जम्मू-कश्मीर में जब अनुच्छेद 370 कायम था, तब राज्य ने क्या खोया था, यह पूरा देश जानता है। घाटी में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी घटनाएं होती रहती थी। वर्तमान केंद्र सरकार ने इसे हटाकर कश्मीर को शेष भारत से समरस करने का काम किया है। इसीलिए आज जम्मू-कश्मीर आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगा पाने में बहुत हद तक सफल हुआ है।
वर्तमान में पूरे देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के स्वर मुखरित होने लगे हैं। समान नागरिक क़ानून निश्चित ही सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का हिमायती है, लेकिन दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान को मान्यता देने वाले अनुच्छेद 370 को लाने का प्रयत्न किया जा रहा है। यह जम्मू-कश्मीर को अलग पहचान देने का काम करता है। इसके चलते कश्मीर का संविधान और ध्वज अलग हो जाएगा, जो भारत के संविधान और तिरंगा से अलग होगा। यह स्थिति डॉ. भीमराव अम्बेडकर के संविधान से अलग प्रकार की होगी। ऐसे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वह बयान स्वतः ख़ारिज हो जाता है, जिसमें वह कहते हैं कि भाजपा संविधान फाड़कर फेंकना चाहती है। इसका एक आशय यह भी है कि कांग्रेस संविधान को बचाना चाहती है, लेकिन कांग्रेस कौन से संविधान को बचाना चाहती है, यह और स्पष्ट करना चाहिए, क्योंकि बाबा साहब अम्बेडकर कभी भी जम्मू-कश्मीर को अलग दर्जा देने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने संविधान में इसको जोड़ने से इनकार कर दिया था। अम्बेडकर जी के मना करने के बाद शेख अब्दुल्ला, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास पहुंचे, जिन्होंने बाबा साहेब अम्बेडकर की भावना को दरकिनार कर शेख अब्दुल्ला को प्रसन्न करते हुए अनुच्छेद 370 का समावेश संविधान में करा दिया। आज कांग्रेस भले इस बात का दम्भ भरे कि वह संविधान को बचाना चाहती है, लेकिन कांग्रेस के कार्य ऐसे लगते नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की सरकार ने ही आपातकाल लगाकर भारत के नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए थे। उस समय आपातकाल लगाने जैसी स्थिति नहीं थी लेकिन अपनी कुर्सी को बचाने के लिए देश पर इसे थोपा गया।आपातकाल संविधान की हत्या जैसा ही कृत्य था।
पांच वर्ष पूर्व केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने वादे के मुताबिक जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को विलोपित कर दिया। भाजपा का यह कदम किसी भी प्रकार से किसी के विरोध में इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भाजपा के हर घोषणा पत्र में इसे हटाने की बात कही गई। इन्हीं वादों को पूरा करने के लिए भाजपा को समर्थन मिला। जब जनता ने भाजपा के वादों को पूरा करने के लिए समर्थन दिया, तब स्वाभाविक रूप से यही कहा जा सकता है कि भाजपा ने वही काम किया, जो जनता चाहती थी। अब जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान चलता है, राज्य का अपना कोई संविधान नहीं है। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है। इसलिए उसके संवैधानिक अधिकार सीमित हैं। जम्मू-कश्मीर की सरकार संविधान में बदलाव करने का कोई संवैधानिक हक नहीं रखती। यह केंद्र सरकार का काम है। राज्य कोई विधेयक पारित तो कर सकता है, लेकिन वह विधेयक तब तक लागू नहीं हो सकता, जब तक केंद्र की सरकार न चाहे। इसलिए यह कहा जा सकता है कि राज्य की नवगठित सरकार का यह कदम केवल राजनीतिक लाभ के लिए है।
देश में कई विपक्षी राजनीतिक दलों ने एक साथ आकर इंडी गठबंधन बनाया है। यह गठबंधन बार-बार संविधान बचाने की बात करता रहता है, लेकिन सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करने वाले विधेयक पर कोई बोलने को तैयार नहीं है। इसे मौन समर्थन भी माना जा सकता है। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की ऐसी कौन-सी राजनीतिक मजबूरी है जो इसकी बहाली के लिए उनको मजबूर कर रही है। क्या इन दलों को यह पता नहीं है कि इन्हीं कानूनों के कारण ही कश्मीर हिन्दू विहीन हो गया है। क्या यह दल फिर से कश्मीर घाटी को उसी स्थिति में ले जाना चाहते हैं।
देश में एक समान कानून होना चाहिए, यह सभी चाहते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसपर मौन हैं। जम्मू-कश्मीर में अगर अनुच्छेद 370 बहाल हो जाता है तो निश्चित ही पाकिस्तान परस्त ताकतें हावी होकर जम्मू-कश्मीर में फिर से अलगाव की स्थिति पैदा कर सकते हैं। ऐसी स्थिति न बने, इसलिए कश्मीर में भी देश का संविधान ही लागू रहे, यह समय की मांग है और यह कदम जम्मू-कश्मीर के हित का भी है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश