विद्यालय, अब जिहाद की नई पाठशाला !
डॉ. मयंक चतुर्वेदी वेदमूर्त‍ि श्रीराम शर्मा आचार्य गायत्री के महान उपासक एवं सनातन हिन्‍दू धर्म के श्रेष्‍ठ प्रचारकों में से एक हैं, उन्होंने कहा है कि ‘व्‍यक्‍ति विचारों का पुंज है, जिसमें विचार नहीं, वह मनुष्‍य नहीं हो सकता।‘ इसके सामान्‍य अर्थ सम
डॉ. मयंक चतुर्वेदी


डॉ. मयंक चतुर्वेदी

वेदमूर्त‍ि श्रीराम शर्मा आचार्य गायत्री के महान उपासक एवं सनातन हिन्‍दू धर्म के श्रेष्‍ठ प्रचारकों में से एक हैं, उन्होंने कहा है कि ‘व्‍यक्‍ति विचारों का पुंज है, जिसमें विचार नहीं, वह मनुष्‍य नहीं हो सकता।‘ इसके सामान्‍य अर्थ समझें तो हम सभी किसी न किसी विचार से बंधे हैं, ये विचार फिर सकारात्‍मक या नकारात्‍मक किसी भी स्‍तर के हो सकते हैं। किंतु किसी शासन तंत्र में विचार का अर्थ, लोक का कल्‍याण एवं राज्‍य में जिसका भी शासन है उसके माध्‍यम से सर्वजन हित है। इसलिए जो शासकीय सेवा में रहते हैं, उनका भी विचार लोक का कल्‍याण है, ऐसा कदा‍प‍ि नहीं होता कि कोई अपने व्‍यक्‍तिगत विचारों को शासन का नाम दे। शासन की अपनी आचार संहिता है, जिसका उल्‍लंघन करने का हक किसी भी लोक सेवक को नहीं। किंतु इस वक्‍त लग रहा है कि भारत में एक अलग ही तरह का इस्‍लामिक फितूर चल रहा है, जहां देखों वहां तमाम घटनाएं घट रही हैं। जिनका कुल उद्देश्‍य गैर मुसलमानों को लक्षित करना है। इसे आप आधुनिक संदर्भों में जिहाद नाम भी दे सकते हैं।

जिहाद शब्‍द सुनते ही कई प्रकार के विचार मन में कौंधते हैं। किसी इस्‍लाम को मानने वाले से पूछेंगे तो वह यही कहेगा कि जिहाद वास्‍तव में एक अच्‍छा अर्थ रखने वाला शब्‍द है। जिहाद का आशय है अल्लाह के मार्ग में अपनी क्षमता के अनुसार अपनी शक्ति का प्रयोग करना। कुरान में जिहाद शब्द का लगभग 36 बार उल्लेख किया गया है। कुरान के मुताबिक, जिहाद के दो प्रकार हैं, ‘जिहाद अल अकबर’, बड़ा जिहाद, जिसका अर्थ है श्रेष्ठ होना और ‘जिहाद अल असगर’, जिसका मतलब है बहुत छोटा। हदीस के मुताबिक, इस्लाम में जिहाद चार तरह का है- दिल से जिहाद, हाथ से जिहाद, जबान से जिहाद, सशस्त्र या तलवारी जिहाद। अब इस छोटे और बड़े जिहाद को कुछ इस तरह समझाया गया है। बड़ा जिहाद, मतलब स्वयं के खिलाफ जिहाद यानी अपने अहंकार को दबाने के लिए, बुरी प्रवृत्तियों और प्रवृत्तियों के खिलाफ संघर्ष। छोटा जिहाद एक ऐसे दुश्मन के खिलाफ लड़ना है जिसने हमला शुरू किया या जिसने अल्‍लाह की इबादत की स्वतंत्रता का अतिक्रमण किया है।

इस्‍लाम की जानकारी देने वाले कई ऑनलाइन या ऑफलाइन प्‍लेटफॉर्म पर आप देखेंगे कि जिहाद को लेकर बहुत सफाई दी गई है, कहा गया है कि इसका उद्देश्य खून बहाना, स्थापित सरकारों के प्रति बेवफाई को प्रोत्साहित करना या किसी भी तरह से शांति को बाधित करना नहीं है। ऐसे सभी कार्य इस्लाम की शिक्षाओं के विरुद्ध हैं। (संदर्भ-अल इस्लाम)। लेकिन इसका व्‍यवहार जो कहा गया है उसके उलट दिखाई देता है। लव जिहाद, लैंड जिहाद, थूक जिहाद, लेबर जिहाद, वोट जिहाद, केमिकल जिहाद, शिक्षा जिहाद और भी ना जाने कितने प्रकार के जिहाद दुनिया भर में चल रहे हैं। फिर भले ही कोई इस्‍लामिक इस बात को स्‍वीकार न करे कि जिहाद के नाम पर कुछ गलत हो रहा है। परन्‍तु जो सामने तमाम प्रकार के चल रहे जिहाद हैं, उन सभी का एक की उद्देश्‍य दिखता है, गजबा-ए-हिंद और गजबा-ए-दुनिया! क्‍योंकि यदि जिहाद का अर्थ वास्‍तविकता में पाक होता हो आज यह नौबत ही नहीं आती कि विश्‍व के जितने भी आतंकवादी इस्‍लामिक संगठन जो मानवता पर अत्‍याचार कर रहे हैं वे उसे जिहाद करने और जिहाद के रास्‍ते पर होने का दावा करते। आप कोई भी मुसलमि‍नी आतंकवादी संगठन उठा लें। उदाहरण के तौर पर इन संगठनों को ले सकते हैं, जिन पर कि भारत सरकार ने प्रमुखता से प्रतिबंध लगा रखा है- लश्कर-ए-तैयबा, पासबान-ए-अहले हदीस, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-फुरकान हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार, हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी, अंसार-उल-उम्मा (एयूयू), हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, अल-उमर-मुजाहिदीन, जम्मू और कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया, दीनदार अंजुमन, अल बद्र, जमीयत-उल-मुजाहिदीन, अल-कायदा, पीएफआई, अल-कायदा (एक्यूआईएस) और इसके सभी स्वरूप। दुख्तरान-ए-मिल्लत (डीईएम), इंडियन मुजाहिदीन, इसके सभी संगठन तथा अग्रिम संगठन, इस्लामिक स्टेट,इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया, दाइश, इस्लामिक स्टेट इन खुरासान प्रोविंस (आईएसकेपी), आईएसआईएस विलायत खुरासान, इस्लामिक स्टेट , तहरीक-उल-मुजाहिदीन (टीयूएम), जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश, जमात-उल-मुजाहिदीन भारत, जमात-उल-मुजाहिदीन हिंदुस्तान, ये गिनती और भी अभी बड़ी है, किंतु यहां इतना ही।

तब ये एवं अन्‍य जो इस्‍लामिक इस प्रकार के संगठन हैं इन सभी की हर प्रकार की गतिविधि पर प्रतिबंध है और इन्‍हें आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है, यदि आप इन सभी के उद्देश्‍य एवं कार्य देखेंगे तो यह एक बात समान रूप से कहते और मानते हैं, वह है गैर मुसलमानों पर हिंसा करना, उनके कत्‍ल करना, उन्‍हें हर संभव अलग-अलग तरह से चोट पहुंचाना और ऐसा करने को ये सभी जिहाद का नाम देते हैं। यानी कि इससे स्‍पष्‍ट होता है कि जो भी जिहाद के नाम पर दुनिया में या भारत में कहीं भी हो रहा है उसका मूल उद्देश्‍य गैर मुसलमानों के प्रति नफरत भरा काम करना है। जैसा कि ताजा उदाहरण बिहार के गोपालगंज जिले से सामने आया है। यहां शिक्षिका सुल्ताना खातून ने बच्‍चों को एक अनुवाद दिया, जिसमें कहा गया कि बच्‍चों तुम- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 वर्षों से लोगों को बना रहे मूर्ख -इस पर इंग्लिश ट्रांसलेशन कर दिखाओ। तब कुछ छात्र यह सुन कर असहज महसूस करने लगे। बाद में घर जाकर अपने-अपने अभिभावकों को पूरी बात उन्‍होंने बताई। इसके बाद अभिभावकों ने इसकी लिखित शिकायत की।

अब प्रश्‍न यह है कोई अपने प्रधानमंत्री को लेकर विद्यार्थ‍ियों के मन में जहर कैसे भर सकता है? प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को शक्‍तिशाली बनाने के लिए जो कार्य किए हैं, आज उनका लोहा तो पूरी दुनिया मान रही है। फिर ये शिक्षिका सुल्ताना खातून अपने प्रधानमंत्री के लिए इस तरह की सोच सरकारी सिस्‍टम में रहते हुए कैसे रख सकती हैं और यदि उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किसी भी प्रकार की नफरत है, तब वह उसे शासकीय सेवा में रहते हुए वह भी ड्यूटी में रहकर उसे इस तरह सार्वजनिक रूप से कैसे व्‍यक्‍त कर सकती है और दूसरों को भी इस तरह से करने के लिए उकसा सकती है? वास्‍तव में यह भी एक प्रकार का जिहाद है, अपने वर्तमान राज्‍यीय सिस्‍टम, देश की सरकार एवं राज्‍य सरकारों के प्रति अविश्‍वास पैदा कर दो, ताकि उसका दूरगामी लाभ अपने हित में अधिकतम उठाया जा सके।

इससे पहले बिहार से ही सामने आया था कि शिक्षक जियाउद्दीन ने बच्‍चों को बढ़ाया कि हनुमान जी मुस्लिम थे और वो पांचों टाइम की नमाज पढ़ते थे। इस संबंध में स्कूल की छात्रा साहिबा परवीन समेत अनेकों ने बताया भी कि उनके शिक्षक ने कहा है कि 'हनुमान जी हिंदू धर्म के पहले ऐसे भगवान हैं जिन्होंने नमाज पढ़ी थी, उन्‍हें रामजी नमाज पढ़वाते थे। हनुमान जी मुसलमान हैं।' देश के सभी मदरसे काफिर, मुर्शिक के बारे में पढ़ा रहे हैं। मध्‍य प्रदेश के दमोह जिले में सामने आ चुका है कि कैसे गंगा-जमुना स्कूल से मस्जिद में जाने के लिए गुप्त रास्ता बनाया गया, बच्चों को नमाज करनी होती थी। कई बच्‍चों को कलमा एवं कुरान की अनेक आयतें याद कराई गईं। बिजनौर के सरकारी स्कूल में मुस्लिम टीचर का फरमान था कि टोपी पहनकर आए मुस्लिम छात्र और दूसरी तरफ हिंदू छात्रों से कहा जाता कि उनको तिलक लगाकर स्कूल आने की अनुमति नहीं, उनका तिलक मिटा दिया जाता था। गुजरात में कच्‍छ जिले के पर्ल्स स्कूल में हिंदू छात्रों से बकरीद सेलिब्रेशन के नाम पर नमाज अदा करवाई गई, उन्‍हें ये सिखाया कि कैसे नमाज पढ़ी जाती है और उसके क्‍या फायदे हैं। झारखण्‍ड के स्‍कूलों में शुक्रवार का अवकाश रविवार के स्‍थान पर रखना। गैर मुसलमानों को भी मदरसों की शिक्षा एवं अन्‍य विद्यालयों में पढ़ा रहे कई मुसलमान शिक्षकों के माध्‍यम से लगातार ब्रेन मैपिंग के कई मामले आपको मिल जाएंगे।

वस्‍तुत: सवाल यह है कि क्‍या इस प्रकार के नफरती जिहाद की भारत में किसी को अनुमति दी जा सकती है? जो हो रहा है क्‍या यह उचित है? भारतीय संविधान का अनुच्छेद 28(3) इस संबंध में देखा जा सकता है। जिसमें साफ लिखा है कि राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता प्राप्त करने वाली किसी शैक्षणिक संस्था में जाने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली किसी धार्मिक शिक्षा में भाग लेने या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न किसी परिसर में आयोजित किसी धार्मिक पूजा में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी, जब तक कि ऐसे व्यक्ति ने या यदि ऐसा व्यक्ति अवयस्क है तो उसके अभिभावक ने इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी हो। अब सोचिए; क्‍या कोई हिन्‍दू अपने बच्‍चों को शिक्षा के माध्‍यम से इस प्रकार की अनुमति देगा? यदि नहीं देगा तो फिर ये नफरती शिक्षा, बाल मन में मनोवेज्ञानिक रूप से इस्‍लाम को श्रेष्‍ठ बताने की शिक्षा गैर मुस्‍लिम बच्‍चों को विभिन्‍न माध्‍यमों से भारत में कैसे दी जा रही है? फिलहाल तो यही दिखाई दे रहा है कि देशभर में तमाम शिक्षा के केंद्र अब जिहाद की नई पाठशाला बनते जा रहे हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी