माधोराय की पालकी निकलने के साथ ही खत्म हुआ होली का जश्न
मंडी, 13 मार्च (हि.स.)। देश भर में मनाई जाने वाली होली से एक दिन पहले ही वीरवार को मंडी की गलियों में अबीर गुलाल उड़ाया गया। रंगोत्सव-2025 के दौरान ऐतिहासिक सेरी मंच पर होली के मतवालों ने डीजे की धुन पर खूब धमाल मचाया। वहीं पर मंडी की गलियों में होली
मंडी के सेरी पंडाल में धमाल मचाते युवा और माधोराय की पालकी के साथ शहर की परिक्रमा को निकले होली के मतवाले।


मंडी, 13 मार्च (हि.स.)। देश भर में मनाई जाने वाली होली से एक दिन पहले ही वीरवार को मंडी की गलियों में अबीर गुलाल उड़ाया गया। रंगोत्सव-2025 के दौरान ऐतिहासिक सेरी मंच पर होली के मतवालों ने डीजे की धुन पर खूब धमाल मचाया। वहीं पर मंडी की गलियों में होली के मतवाले नें सड़कों पर खूब धमाल मचाया। जबकि सेरी पैवेलियन में हजारों युवा एक साथ डीजे की धुन पर थिरके। शिवरात्रि के बाद सेरी पैवेलियन पर इतनी भारी संख्या में लोग जमा हुए और युवा जम कर नाचे। यहां तक कि महिलाएं और युवतियां भी अपनी-अपनी टोलियों में एक दूसरे को रंग लगाते हुए मस्ती करती नजर आई।

मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां गैरों पर रंग नहीं डाला जाता। बिना जान-पहचान के किसी महिला पर भी रंग नहीं डालते। यही वहज है कि यहां पर पुरूषों के अलावा महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती है। सेरी पैवेलियन पर हजारों लोग जमा हुए डीजे की धुन पर युवओं ने जमकर डांस किया। इनमें लड़कियां भी भीड़ का हिस्सा बन कर खूब नाची। जबकि महिलाएं भी सेरी चानणी और सीढ़ियों पर नृत्यरत होकर होली का आनंद उठाती रही। मंडी में शिवरात्रि के बाद होली ऐसा पर्व है जिसमें राजदेवता माधोराय की भागीदारी रहती है। रियासत काल में तो माधोराय मंदिर के प्रांगण में राजा अपने दरबारियों और शहर के मोहतबीर लोगों के साथ होली खेलता था। जबकि प्रजा के साथ भी होली खेलने का अवसर जाने नहीं देना चाहता था। जिसके लिए राजा घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच होली खेलने जाता था। वहीं पर मंडी में राजदेवता माधवराय भी होली के रंग से सराबोर रहते हैं। माधोराय को भगवान कृष्ण का रूप माना जाता है। जिसके चलते मंडी की होली में उनकी भागीदारी रियासतकाल से ही चली आ रही है। पहाड़ की होली में रंगों और खुशबूओं का अनूठा सामंजस्य होता है। होली राजतंत्र के जमाने से ही राजा और प्रजा को एक रंग में रंग देती थी।

ग्रामीण अंचलों में मनाई ताजी है फाग

ग्रामीण अंचलों में फाग के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार में प्रकृति और मानवीय समृद्धि की भावना जुड़ी हुई है। क्योंकि पेड़ पौधों पर नई कोंपलें फूटने ए वन फूलों के महकने से प्रकृति समृद्ध होकर मानवीय जीवन का संरक्षण करती हैए वहीं पर प्रकृति के रंगों से होली खेल मानव अपनी खुशहाली का जश्न मनाता है। इस दिन कांभल नामक वृक्ष की टहनी को फाग के रूप में जलाने की परंपरा है। इसके पीछे मान्यता यह है कि जिस तरह से होली का दहन हुआ है। उसी प्रकार रोग और दरिद्रता का भी फाग की इस आग में जल कर भस्म हो जाए। जिससे घर गांव में खुशहाली और समृद्धि आएगी।

माधोराय की पालकी निकलने के बाद बंद होती है होली

मंडी में राजदेवता माधव राय की भागीदारी इस उत्सव को रियासत के राजा और प्रजा के रिश्तों की प्रगाढ़ता को उजागर करता है। माधवराय मंडी रियासत के राजा रहे हैं। मंडी की होली राजा और प्रजा के बीच आपसी सदभाव और सौहार्द की प्रतीक भी है। होली की यह मस्ती माधोराय की पालकी निकलने के पश्चात समाप्त हो जाती है। इसके बाद कोई भी किसी पर रंग नहीं डलता है। सेरी में धमाल मचाने के बाद होली के मतवालों की टोली नाचते गाते हुए माधोराय की पालकी को उठाए हुए शहर का चक्कर लगाने निकली। इसके बाद मंडी शहर में रंगों की होली समाप्त हो गई।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा