थाईलैंड से डिपोर्ट होकर घर पहुंचे जींद के दो युवक
किसी तरह जान बचा कर अपने घर सकुशल पहुंचे दोनों युवक, खाने के लिए दिया जाता था घटिया स्तर भोजन और दी जाती थी यातनाएं
थाईलैंड से डिपोर्ट होकर घर पहुंचे जींद के दो युवक


जींद, 13 मार्च (हि.स.)। सफीदों उपमंडल के सबसे बड़े गांव मुआना के दो युवक थाईलैंड से किसी तरह से जान बचाकर सकुशल अपने घर पर लौटे हैं। वे बड़े सपने लेकर गए थे कि वे विदेश जाकर अच्छा पैसा कमाकर परिवार को आगे बढ़ाएंगे लेकिन वहां जाकर उन्हे विभिन्न प्रकार की प्रताडऩाओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने किसी तरह से थाईलेंड के भारतीय दूतावास से संपर्क किया और दूतावास के सहयोग से वे किसी तरह से कंपनी के जाल से निकल कर डिपोर्ट होकर भारत लौटे।

गुरुवार को अपने घर गांव मुआना पहुंचे दोनों युवकों में अश्वनी 20 अगस्त 2024 को तथा कपिल सात जुलाई 2024 को थाईलेंड गए थे। गुरूवार को अश्वनी व कपिल ने बताया कि वे डीडीएल कंपनी थाईलैंड में नौकरी करने के लिए गए थे। उनका संपर्क टेलीग्राम के माध्यम से रंजीत कुमार निवासी मलेशिया से हुआ था। रंजीत ने उन्हे झांसा दिया कि वे यहां पर आ जाएं और उनको कंपनी में बढिय़ा काम दिलवाया जाएगा। वे रंजीत के झांसे में आकर थाईलैंड पहुंच गए। जहां से उनको एजेंट म्यांमार ले गया और वहां की डीडीएल नामक कंपनी में नौकरी दिलवाई गई। उसके बाद उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया।

उनको कहा गया कि कंपनी में उनको डाटा एंट्री ऑप्रेटर का काम करना होगा और उन्हे ट्रेनिंग देनी शुरू की गई। इस दौरान उनको पता चला कि यहां पर गैर कानूनी तरीके से लोगों के साथ ठगी का कार्य किया जाता है। जिस पर उन्होंने कहा कि उन्हें यह काम समझ में नही आया। उसके बाद उनको चैटिंग ऑप्रेटर लगाया गया। इस चैटिंग में लोगों को लिंक भेज कर उन्हें परचेज करने के लिए फंसाया जाता था। लोगों के पैसे तो कंपनी के पास आ जाते थे लेकिन उन्हें सामान उपलब्ध नही करवाया जाता था। उसके बाद वे सारा माजरा समझ गए और उन्होंने काम करने से मना कर दिया तो उनकी सैलरी रोक ली गई तथा उन पर जुर्माना लगाने की बौछार की दी गई।

अश्वनी व कपिल ने बताया कि वहां पर काम के बाद लोगों को कंपनी के द्वारा एक कैदी की तरह से बंद अंधेरे कमरे में रखा जाता है और अनेक प्रकार की यातनाएं दी जाती है। कंपनी के द्वारा छोटी-छोटी गलतियों के लिए भारी भरकम जुर्माने निर्धारित किए गए है और कर्मचारियों की पूरी सैलरी जुर्माना भरने में ही खत्म हो जाती है। उसके बाद जो व्यक्ति काम करने से मना करता है तो उससे लाखों रुपये की डिमांड की जाती है, जोकि कर्मचारी भर पाने में असक्षम होता है। किसी तरह उन दोनों ने किसी तरह से थाइलेंड स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क किया। भारतीय दूतावास के दखल के बाद थाइलेंड की सेना वहां पर पहुंची और उन्हे अन्य लोगों के साथ वहां से बाहर निकाला और भारत डिपोट करवाया। दोनों युवकों का कहना है कि भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि वे अपनी जान बचाकर अपने घरों को सकुशल लौट आए हैं और वहां का मंजर याद करके वे सिहर जाते हैं।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / विजेंद्र मराठा