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पानीपत, 13 मार्च (हि.स.)। पानीपत जिले का गांव नौल्था जो सदियों से होली फाग के लिए जाना जाता है। इस पर्व को मनाने के लिए गांव से विदेश गए एनआरआई भी अपने पैतृक गांव नौल्था में इस त्यौहार को मनाने के लिए पहुंच जाते है।
गांव के वयोवृद्ध व बुद्धिजीव चंदर सिंह जागलान ने बताया कि इस त्यौहार को सिद्ध बाबा लाठेवाले के नाम से मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि इतिहास के पन्नों में इस त्योहार को बाबा लाठे वाला अपने साथ लेकर आए थे। अब से लगभग 750 वर्ष पहले बाबा जी का गांव में आगमन हुआ था। उन्होंने गांव के बाहर अपना डेरा डाल दिया, लेकिन वह गांव अन्दर नहीं जाते थे। उन्होंने गांव के बाहर ही रहकर तपस्या करनी शुरू कर दी। तपस्या करते करते जब काफी बाबा को काफी दिन हो गए तो गांव वालो ने बाबा जी से अनुरोध किया की आप गांव के अन्दर आ जाए। तब बाबा जी ने गांव वालो से कहा की जब आप लोग फाल्गुन पूर्णमासी पर फाग मनाओगे , तो उस दिन उस दिन में अपने मन्दिर से पालकी में बैठ जरूर आऊंगा और पुरे गांव का भ्रमण करूंगा ताकी गांव में कोई विपत्ति न आए। बस तभी से से बाबा लाठे वाले के आशीर्वाद से फाग की परम्परा चली आ रही है। यह महोत्सव होली से 15 दिन पहले शुरु हो जाता है।
जिसमें रात को मनोरंजन हेतु सांग का मंचन होता था। और रात को आधे गांव के युवा एक तरफ ओर आधे गांव बुजर्ग एक तरफ होकर बिना किसी भेदभाव के डाट लगाते थे। ओर जो बलशाली होता था उसी की जीत थी। आगे उन्होंने बताया कि होली के अगले दिन यानी दुलहंडी को गांव की सभी नौ चौपालों में सामूहिक तौर पर लाल रंग को उबाल कर ठण्डा किया जाता है। उसके बाद चार बजे गांव के चारों तरफ देवी देवताओं की झाकियां निकाल जाती है और अंत में 36 बिरादरी के लोग पाना राजन की चौपाल में इकठ्ठे होकर गाजे बाजे के साथ नो चोपालो पर पहुंचते है जहां रंग पहले से ही तैयार किया होता है। उस रंग को लोगों के उपर बरसाया जाता है।
एक बार इस परंपरा को खत्म करने के लिए 1942 में अंग्रेजी सरकार ने द्वारा प्रयास किया गया था। तर्क यह दिया कि इस दिन युवा व बुजुर्ग शराब का सेवन करते है। परन्तु गांव ने प्रशासन के आगे घुटने टेकने से मना कर दिया। गांव में बनी पुलिस चौकी का घेराव कर दिया। इस घटना के कुछ समय बाद अंग्रेज सरकार के गवर्नर हैरी गांव में पहुंचे तो गांव वालो ने गवर्नर के सामने अपनी बात रखी और गवर्नर हैरी के सामने फाग मनाया तो गवर्नर फाग के त्योहार को देख कर गदगद हो गए और गांव की तारीफ की। इस त्योहार को मनाने की इजाजत दे दी इसके बाद अंग्रेजी प्रशासन ने गांव वालों को तीन दिन के लिए भी पूरी छूट दे दी थी।
गांव के 94 साल के बुजुर्ग इंद्र सिंह जागलान ने बताया कि इससे पूर्व 1930 में फाग के दिन एक दुखद घटना हो गई थी, जिसमें गांव के ही सम्मानित व्यक्ति सरदारा की अचानक मौत हो गई। गांव ने फाग करना बन्द कर दिया। जब फुलु के पुत्र अग्रेजों के जैलदार बन गए थे। उन्होंने परम्परा को कायम रखने के लिए चौपाल से रंग की बाल्टी लाकर मृत सरदारा की अर्थी पर डाल कर गांव वालो से प्रार्थना की कि की पहले फाग होगा बाद में संस्कार होगा। इस लिए नौल्या गांव का फाग कभी बन्द नहीं हुआ। अब इसी फाग को आसपास के गांव भी मनाने लग गए ।
इंद्र सिंह ने बताया कि साल 1931 में धामू के लड़के जैलदार उदमी के घर फाग के दिन एक सन्तान हुई जिसका नाम फागू रखा गया। अब फाग का पोता पुर्व फौजी तेजवीर सिंह, को 24 गांव का प्रधान बनाया गया है। परिवार में आज भी फाग के दिन गांव में प्रशासन खेल देखने आता है। पिछले दिनो कैप्टन शक्ति सिंह जो वर्तमान में उपायुक्त है। तथा पूर्व उप जिला उपायुक्त रहे एन के अग्रवाल ने भी इस परम्परा को देखा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अनिल वर्मा