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होली पूजन की पुरानी परंपरा, गोबर के उपले किए समर्पित
फरीदाबाद, 13 मार्च (हि.स.)। बल्लभगढ़ में होली के त्योहार को लेकर महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर श्रद्धा और भक्ति के साथ होलिका की पूजा की। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा सिपाही लगाए थे। गुरुवार काे होलिका पूजने के लिए महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनकर होलिका स्थल पर पहुंची और विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। महिलाओं ने सूत के कच्चे धागे से होलिका को बांधकर परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना की और परिक्रमा की। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस पूजा से परिवार में खुशहाली बनी रहती है और बुरी शक्तियों का नाश होता है। महिलाओं ने बताया कि होली से एक दिन पहले होलिका की पूजा करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने अपने भतीजे विष्णु भक्त प्रह्लाद को जलाने के उद्देश्य से आग में प्रवेश किया था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। घटना के प्रतीक रूप में हर साल होलिका दहन किया जाता है और उससे पहले श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। महिलाओं ने बताया कि वे इस परंपरा को पिछले 40 वर्षों से निभा रही हैं और आज भी पूजा का तरीका वैसा ही है। पूजन में लेकर आने वाले सामानों के बारे में भी महिलाओं ने बताया। उन्होंने कहा कि पूजा में गोबर के उपलों का उपयोग किया, जिन्हें सूत के धागे से बांधकर होलिका को समर्पित किया गया। मान्यता है कि दहन के दौरान गोबर के उपले जल जाते हैं, लेकिन सूत का धागा नहीं जलता, जो आस्था और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। शाम को परंपरागत रूप से होलिका दहन किया जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार / -मनोज तोमर