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-“मैं भाग्यशाली हूं कि लाखों अन्य की तरह आरएसएस ने मुझे राष्ट्र के लिए जीने को प्रेरित किया”
नई दिल्ली, 21 फ़रवरी (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय भाषाओं में कभी कोई बैर नहीं रहा है। भाषाओं ने हमेशा एक-दूसरे को अपनाया और समृद्ध किया। कई बार भाषा के नाम पर भेद डालने की कोशिश की जाती है। हमारी भाषाओं की साझा विरासत ही इसका सही जवाब देती है। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के भ्रमों से दूर रहकर भाषाओं को समृद्ध करना और अपनाना हमारा सामाजिक दायित्व है। आज हम देश की सभी भाषाओं को मुख्यधारा की भाषा की तरह देख रहे हैं। मराठी समेत सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा के विकास को बढ़ावा दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि हमारी ये भाषायी विविधता ही हमारी एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है। आज भारत दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यताओं में से एक है। इसका कारण हमारा लगातार विकसित होना है। हमने लगातार नए विचारों को जोड़ा है। नए बदलावों का स्वागत किया है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी भाषायी विविधता इसका प्रमाण है।
मराठी भाषा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम इस बात पर भी गर्व करेंगे कि महाराष्ट्र की धरती पर मराठी भाषी एक महापुरुष ने 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बीज बोया था। आज ये एक वटवृक्ष के रूप में अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। उन्होंने कहा, “मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि लाखों अन्य लोगों की तरह आरएसएस ने मुझे राष्ट्र के लिए जीने को प्रेरित किया है।”
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञ चल रहा है। उनके जैसे लाखों लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है और संघ के कारण उन्हें मराठी भाषा और मराठी परंपरा से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसी कालखंड में मराठी भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा दिया गया है।
प्रधानमंत्री ने मराठी भाषा को ‘शास्त्रीय’ भाषा का दर्जा दिए जाने का भी उल्लेख किया और कहा कि भारत और पूरी दुनिया में 20 करोड़ मराठी भाषा बोलते हैं, आश्चर्य है कि मराठी भाषा को यह दर्जा पाने में दशक तक इंतजार करना पड़ा। उन्होंने मराठी को एक संपूर्ण भाषा बताया और कहा कि आज दिल्ली की धरती पर मराठी भाषा के इस गौरवशाली कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन एक भाषा या राज्य तक सीमित आयोजन नहीं है, मराठी साहित्य के सम्मेलन में आजादी की लड़ाई की महक है। इसमें महाराष्ट्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत है।
उन्होंने कहा कि “महाराष्ट्र और मुंबई हिंदी फिल्मों के साथ मराठी फिल्मों की स्थिति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नई फिल्म, छवा, अभी हर जगह सुर्खियां बना रही है।” महाराष्ट्र के कितने ही संतों ने भक्ति आंदोलन के जरिए मराठी भाषा में समाज को नई दिशा दिखाई। गुलामी के सैकड़ों वर्षों के लंबे कालखंड में मराठी भाषा आक्रांताओं से मुक्ति का भी जयघोष बनी।
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हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा