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कानपुर, 21 फरवरी (हि.स.)। हमारे निष्कर्ष अगली पीढ़ी के उपचारों को डिजाइन करने के लिए एक आणविक खाका प्रदान करते हैं। जो सीएक्ससीआरटू को सटीक रूप से लक्षित कर सकते हैं और संभावित रूप से कैंसर और श्वसन रोगों में इसकी भूमिका को कम कर सकते हैं। इस रिसेप्टर को इसकी सक्रिय अवस्था में देखकर, अब हमारे पास अत्यधिक विशिष्ट अवरोधक विकसित करने का अवसर है। जो इसके दुष्प्रभाव को बाधित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से उपचार रणनीतियों में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है। यह बातें शुक्रवार को प्रो. अरुण कुमार शुक्ला ने कही।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) में जैविक विज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग के शोधकर्ताओं की एक टीम ने कैंसर की प्रगति और श्वसन संबंधी विकारों में शामिल एक प्रमुख मानव रिसेप्टर सीएक्ससीआरटू की परमाणु संरचना को सफलतापूर्वक देखा है। प्रतिष्ठित जर्नल मॉलिक्यूलर सेल में प्रकाशित यह खोज इस महत्वपूर्ण अणु को लक्षित करके नए उपचार विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
केमोकाइन्स छोटे सिग्नलिंग प्रोटीन होते हैं। जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संक्रमण और चोट के स्थानों पर गाइडिंग करके प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विभिन्न कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्लियों में अंतर्निहित विशिष्ट रिसेप्टर्स के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, जिससे शारीरिक प्रतिक्रियाओं को सक्रिय हो जाती हैं। इन रिसेप्टर्स में, सीएक्ससीआरटू विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कई सूजन संबंधी विकारों और कैंसर से संबंधित है, जिसमें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, एथेरोस्क्लेरोसिस और अग्नाशय कैंसर शामिल हैं।
इस सफलता के बाद टीम ने इस रिसेप्टर को लक्षित करने वाले छोटे अणुओं और एंटीबॉडी सहित नए उपचार विकसित करना शुरू कर दिया है। इनका प्रयोगशाला परीक्षण किया जाएगा, उसके बाद पशुओं पर अध्ययन किया जाएगा, जिससे आईआईटी कानपुर कैंसर और श्वसन रोगों के लिए अग्रणी अभिनव उपचार समाधानों को प्रदान करने की दिशा में एक कदम और करीब आ जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप