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नई दिल्ली, 20 फ़रवरी (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि किसी भी देश की सबसे बड़ी पूंजी उसकी सांस्कृतिक विरासत है और इन सबमें भाषा सबसे प्रामाणिक स्तंभ है।
उपराष्ट्रपति ने गुरुवार को 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन प्रतिनिधिमण्डल को उपराष्ट्रपति निवास में संबोधित करते हुए कहा कि, करीब 1200-1300 साल पहले जब सब कुछ उत्थान पर था, सब ठीक चल रहा था। दुनिया हमारी ओर देख रही थी, हम ज्ञान के भंडार थे। नालंदा, तक्षशिला जैसी संस्थाएं हमारे हाथ थीं, फिर आक्रमणकारी आए, वे हमारी भाषा, संस्कृति, और धार्मिक स्थानों के लिए बहुत दमनकारी एवं क्रूर थे। उस समय बर्बरता और प्रतिहिंसा चरम सीमा पर थी। आक्रान्ताओं ने हमारी भाषाओं को कुंठित कर दिया।
उन्होंने कहा कि, भाषा साहित्य से परे है क्योंकि वह साहित्य समसामयिक परिदृश्य, तत्कालीन परिदृश्य, तत्कालीन चुनौतियों को परिभाषित करता है और यह ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर भी ध्यान देता है।
मातृभाषा के महत्व पर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा कि, हाल के वर्षों में भाषा पर काफी जोर दिया जा रहा है। तीन दशक बाद एक बहुत अच्छा प्रयास किया गया। बदलाव किया गया, बदलाव की प्रमुखता है मातृभाषा। जिस भाषा को बच्चा-बच्ची सबसे पहले समझते हैं। जिस भाषा में विचार आते हैं। वैज्ञानिक परिस्थितियां भी यह इंगित करती हैं कि जैविक क्या है? जो व्यवस्थित रूप से विकसित होता है वह सुखदायक और स्थायी होता है और सभी के कल्याण के लिए होता है।
मराठी भाषा को भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए उपराष्ट्रपति ने मराठा स्वराज्य और शिवाजी को याद करते हुए कहा कि यदि गौरव को परिभाषित किया जाए तो वह मराठा गौरव है।
भारत के संविधान के भाग-15 में, जहां चुनाव की चर्चा की गई है, वहां किसका चित्र है? शिवाजी महाराज का। कभी नहीं झुके, इसीलिए संविधान निर्माताओं ने सोचकर, समझकर, दूरदर्शिता दिखाते हुए, चुनाव वाले मामले में शिवाजी महाराज का चित्र रखा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी