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भागलपुर, 20 फ़रवरी (हि.स.)। सामाजिक न्याय दिवस के अवसर पर गुरुवार को जिले के बदालीचक गोराडीह में संवाद का आयोजन हुआ। इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता उदय ने कहा कि भारतीय समाज में सामाजिक न्याय बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। सामाजिक न्याय का अर्थ है समाज में कुरीति, परंपरा, धर्म आदि के नाम पर नस्लीय, जातीय या लैंगिक भेदभाव का विरोध और समता के लिए प्रयास।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद 90 के दशक में जनता सरकार, वीपी सिंह और लालू यादव ने सामाजिक न्याय के मुद्दे को जोर-जोर से उठाया था। परंतु इसकी शुरुआत भारतीय समाज में बुद्ध कल से ही देखने को मिलती है। बाद के समय में कबीर, रैदास, गुरु नानक, दादू, नामदेव, बसबन्न आदि ने भी सामाजिक न्याय की बात की। यह अलग बात है कि सामाजिक न्याय नाम की कोई शब्दावली नहीं थी। सामाजिक न्याय के लिए संयुक्त राष्ट्र में 1995 में बहस शुरू हुई, 2009 में इसे महत्वपूर्ण मानते हुए 20 फरवरी को सामाजिक न्याय दिवस मनाने की शुरुआत हुई। समाज में व्याप्त गैर बराबरी को दूर करने का यह संकल्प दिवस है।
राहुल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी भी सभ्य समाज के लिए न्याय एक महत्वपूर्ण पहलू है। वहां न्याय पाना अधिक कठिन और चुनौती पूर्ण हो जाता है जहां सामाजिक या धार्मिक मान्यताओं के कारण गैर बराबरी या उत्पीड़न हो। सामाजिक धार्मिक स्तर पर व्याप्त कुरीतियों से लड़ना भी बहुत कठिन होता है इसलिए विश्व समाज को लगा कि सामाजिक न्याय के लिए अलग से पहल करने की जरूरत है। महिला पुरुष समता की बात हो, वर्ण भेद हो या फिर उम्र के आधार पर भेदभाव, इसे हमारा समाज गंभीरता से नहीं लेता है।
मानवीय चेतना के विकास के साथ ही हमने समाज में व्याप्त इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया और आज पिछड़े, समाज के अधिकार की बात कर रहे हैं। जब तक लड़कियों को लड़कों के बराबर संपत्ति, समाज और राजनीति मेंअधिकार नहीं मिल जाता तब तक समता की बात कैसे की जा सकती है ? इस अवसर पर मनजीत कुमार, उदय, राहुल, जय नारायण, तारा कुमारी, जितेंद्र कुमार सिंह, पूजा कुमारी, अरविंद कुमार, शुभम ऋषिदेव, श्याम देव, करनी देवी, सुलेखा देवी आदि मौजूद थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिजय शंकर