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सीतापुर, 10 फ़रवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुंभ से महामंडलेश्वर की पदवी पाकर नैमिषारण्य वापस लौटे संतों ने महाकुंभ की व्यवस्थाओं को लेकर योगी सरकार की सराहना की है, तो वहीं महाकुंभ में व्यवस्था के दुष्प्रचार के नाम पर हो रही सियासत पर भी गहरी नाराजगी प्रकट की है। जानकारी हो कि महाकुंभ में पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी से जुड़े नैमिषारण्य के दो संतों को महामंडलेश्वर की पदवी मिली है। नैमिषारण्य वापसी पर हिन्दुस्थान समाचार ने प्रयागराज महाकुम्भ की व्यवस्थाओं पर हो रही राजनीति पर उनकी प्रतिक्रिया जानी।
स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि महाकुंभ की व्यवस्थाएं अच्छी थीं।योगी सरकार ने साधु-संतों एवं श्रद्धालुओं के लिए कोई कसर नहीं बाकी रखी। उन्होंने कहा कि भगदड़ की घटना अत्यंत दुखद थी, परंतु इसकी आड़ में व्यवस्थाओं को कोसा नहीं जा सकता। सरकार की पूरी ईमानदारी से कोशिश रही कि साधु-संतों एवं स्नान के लिए आने वाले लोगों लिए अच्छा प्रबंध हो। योगी सरकार इस मामले में खरी उतरी है ।
महामंडलेश्वर विद्यानंद सरस्वती ने उदाहरण देते हुए कहा कि 10 लोगों की क्षमता के एक कमरे में अगर 100 लोग आ जाएं तो थोड़ी बहुत अव्यवस्था होना स्वाभाविक बात है, परंतु बाद में उसे ठीक करने की कोशिश होती है, लेकिन जिस प्रकार से अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए कुछ लोग प्रयागराज में हुई भगदड़ की घटना की आड़ में पूरे महाकुंभ को बदनाम कर रहे हैं , वह अत्यंत दुःखद व निन्दनीय है।
वही महामंडलेश्वर सदा शिवेंद्र सरस्वती ने महाकुम्भ में योगी सरकार की व्यवस्थाओं को सराहनीय बताते हुए कहा कि आलोचना राजनीतिक रोटियां सेकने जैसी है।सभी साधु -संतों एवं श्रद्धालुओं के लिए योगी सरकार की व्यवस्था अच्छी थी। उत्तर प्रदेश में राजसत्ता की कमान एक संत के हाथ में है। संत के रूप में योगी जी पूरी ईमानदारीपूर्वक महाकुंभ के प्रति अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की धरोहर को योगी जी ने अच्छे तरीके से आगे बढ़ाया है।
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में सीतापुर को धार्मिक दृष्टिकोण से मिली उपलब्धि ऋषियों की तपस्थली नैमिषारण्य को गौरवान्वित करने वाली है। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के शिविर में नैमिषारण्य से संबंध रखने वाले इन दोनों संतों , सदा शिवेंद्र सरस्वती व स्वामी विद्यानंद सरस्वती को महाकुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई है। वहां परंपराओं का निर्वहन करते हुए इन दोनों संतों का पट्टाभिषेक किया गया है।
नैमिषारण्य वैसे भी धर्म क्षेत्र में सुविख्यात है। यहां कभी 88 हजार ऋषियों ने तपस्या की थी। वेदों, पुराणों की रचना स्थली, मनु शतरूपा की तपस्थली के रूप में इसे पूरे विश्व में मान्याता प्राप्त है। इन सबके बीच संतों का पट्टाभिषेक कर उनको महामंडलेश्वर घोषित कर देना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।
नैमिषारण्य के स्वामी सदा शिवेंद्र सरस्वती व स्वामी विद्यानंद सरस्वती को प्रयागराज महाकुंभ के दौरान पट्टाभिषेक करके महामंडलेश्वर की पदवी से सम्मानित किया गया है। मात्र 19 वर्ष की आयु में 1990 में संत जीवन में प्रवेश करने वाले विद्यानंद सरस्वती पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी से जुड़े हैं वहीं सदा शिवेंद्र सरस्वती 11 वर्ष की आयु से नैमिषारण्य में हरिहरानंद सरस्वती ब्रह्म विज्ञान पीठ संस्थानम से पढ़ाई करते हुए आश्रम से संत के रूप में निकले।
इन दोनों संतों को महा निर्वाणी अखाड़ा के अध्यक्ष श्री रविंद्रपुरी महाराज महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानन्द भारती, आचार्य राजगुरु की मौजूदगी में महाकुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि मिली। दोनों संतों को वैदिक परंपरा के अनुसार अखाड़े के महामंडलेश्वरों ने पट्टाभिषेक (चादरविधि) करके महामंडलेश्वर की पदवी से सम्मानित किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / Mahesh Sharma