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गुवाहाटी, 01 फरवरी (हि.स.)। असम सरकार राज्य में पारंपरिक भैंसा लड़ाई को कानूनी मान्यता देने के लिए नया कानून लाने की योजना बना रही है। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने शनिवार को एक जनसभा के दौरान यह घोषणा की।
सरमा ने आहतगुरी भैंसा लड़ाई को असम की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा बताते हुए कहा कि इसे पारंपरिक खेल के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भी मान्यता दे चुका है। उन्होंने कहा, हम जल्द ही ऐसा कानून लाएंगे जो इन पारंपरिक खेलों को जारी रखने की अनुमति देगा।
प्रस्तावित विधेयक को विधानसभा में पेश किया जाएगा, जिससे भैंसा लड़ाई को कानूनी सुरक्षा मिलेगी और इसे बिना किसी कानूनी बाधा के आयोजित किया जा सकेगा।
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब पिछले साल दिसंबर में गौहाटी उच्च न्यायालय ने असम सरकार द्वारा जारी एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को रद्द कर दिया था, जिसमें माघ बिहू के दौरान भैंसा और बुलबुल पक्षी लड़ाई की अनुमति दी गई थी। अदालत ने इसे 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन बताया था।
इसके बावजूद, असम सरकार पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने के प्रयास कर रही है। पिछले साल दिसंबर में राज्य कैबिनेट द्वारा अनुमोदित नए दिशानिर्देशों के तहत नौ साल बाद बुलबुल पक्षी लड़ाई आयोजित की गई थी। एसओपी में पशु कल्याण को प्राथमिकता दी गई थी, जिसमें नशा और धारदार हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया था।
हाजो के हयग्रीव माधव मंदिर में आयोजित बुलबुल पक्षी लड़ाई और मोरीगांव, शिवसागर समेत ऊपरी असम के जिलों में होने वाली भैंसा लड़ाई माघ बिहू के मुख्य आकर्षण होते हैं। विशेष रूप से आहतगुरी अपनी भैंसा लड़ाई के लिए प्रसिद्ध है।
मुख्यमंत्री ने पिछले साल जनवरी में इन आयोजनों में भाग लिया था और आयोजकों से एसओपी के नियमों का पालन करने का आग्रह किया था। प्रस्तावित कानून से पारंपरिक खेलों की सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखने की उम्मीद की जा रही है।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश