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अजय कुमार शर्मा नसीरुद्दीन शाह हिंदी सिनेमा के सबसे समर्थ अभिनेताओं में से एक हैं। अभिनय के साथ वह अपनी बेबाकी और साफगोई के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी इसी तर्ज़ पर बड़ी बेबाकी से लिखी है। इसमें एफटीआईआई में पढ़ाई के दौरान अपने अनुभवों को उन्होंने पूरी ईमानदारी से साझा किया है। दरअसल, एनएसडी के अंतिम वर्ष में एक दिन कनॉट प्लेस के रीगल थियेटर में `पिया का घर' फिल्म देखते समय निर्णय लिया कि अब वह एफटीआईआई में अभिनय का प्रशिक्षण लेंगे। यह विचार उनके दिमाग में इसलिए भी आया क्योंकि तब तक एनएसडी को नाटकों के लिए अभिनेताओं को प्रशिक्षित करने का सबसे बड़ा संस्थान माना जाता था तो एफटीआईआई को सिनेमा में जाने के लिए अभिनेताओं को प्रशिक्षित करने के लिए सबसे बड़ा माध्यम माना जाता था। वहां से निकली जया भादुड़ी अपनी पहली फिल्म से ही स्टार बन चुकी थीं। एफटीआईआई में एडमिशन लेने की बात पर उनके एनएसडी के गुरु इब्राहिम अलकाजी ने बहुत गुस्सा किया लेकिन उसकी परवाह किए बिना उन्होंने और उनके अभिन्न मित्र जसपाल सिंह ने किसी तरह 25 रुपए खर्च करके तीन फोटो (क्लोजअप, तीन चौथाई चेहरा और पूरा शरीर) खिंचवाकर एफटीआईआई भेज दिए। हालांकि अपने फोटो देखकर वह काफी निराश हुए थे लेकिन फिर यह सोचते हुए कि भगवान दादा, शेख मुख्तार, शम्मी कपूर जैसे जब सितारे बन सकते हैं तो उनकी जैसी शक्ल और सूरत वाले के लिए भी मौका निकल सकता है। ऑडिशन के लिए बुलावा आ गया और इसके लिए मुंबई जाने और महीने भर के खर्च के लिए उनके मित्र जसदेव सिंह ने 400 रुपये दिए जो उस समय काफी बड़ी रकम थी। इस पर उन्होंने लिखा है कि आज तक यह रकम उन्होंने लौटाई नहीं है। ऑडिशन तब वहां अभिनय के इंचार्ज रोशन तनेजा की देखरेख में हुआ। चयन समिति में जया भादुड़ी थीं और ओम शिवपुरी भी जो एनएसडी के ही पासआउट थे और सिनेमा तथा छात्रों के बीच सबसे लोकप्रिय थे। शिवपुरी जी ने बाद में उन्हें बतलाया कि उनके चयन के दौरान यह संकट था कि जब उन्होंने एक संस्थान से अभिनय का प्रशिक्षण ले लिया है तो दूसरे से फिर क्यों? इससे अच्छा यह हो कि किसी दूसरे को मौका दिया जाए। लेकिन उनके इसरार पर उन्हें चुन लिया गया। उन्होंने मुंबई में ऑडिशन दिया तो उनके साथी जसपाल ने दिल्ली में। क्योंकि दोनों ने सोचा था कि एक ही सेंटर से शायद एनएसडी के दो छात्रों को न लिया जाए। चयन के बाद 600 रुपए की जरूरत हुई, जिसमें हॉस्टल का दो महीने का किराया और एडमिशन तथा ट्यूशन फी शामिल थी। यह रकम उनके भाइयों से नहीं मिल सकती थी तो उन्होंने अपने पिता (बाबा) को तार भेजा। वह इस बात से गुस्सा हो गए कि अभिनय के लिए एक और कोर्स का क्या मतलब है?विरोध के बावजूद उन्होंने पैसों का मनीऑर्डर भेज दिया। बाद में मासिक खर्च के लिए उनके दोनों भाई 100 रुपए महीने उनको भेजते रहे। एफटीआईआई में जसपाल और उनको एक ही कमरे में रखा गया। वहां दोनों की रैगिंग भी हुई। सीनियर कलाकारों ने ... एक्टर बनोगे? थोबड़ा देखा है अपना... भिखारी का रोल तो मिल ही जाएगा...जैसे जुमलों से खूब खिंचाई की। स्क्रीन टेस्ट देखते हुए नसीर बिल्कुल हक्के-बक्के रह गए क्योंकि शम्मी कपूर, शेख मुख्तार तो छोड़िए वे तो मोहन चोटी से भी गए गुजरे लग रहे थे। उनके बैच में अमूमन खाते-पीते घरों के लड़के थे और लड़कियां तकरीबन सभी स्कूल से निकली 16 - 17 बरस की थीं। जसपाल और वह तब 24-25 साल के थे यानी क्लास में सबसे बुजुर्ग। पहले दिन क्लास में जब प्रोफेसर रोशन तनेजा ने उनसे क्लास से बाहर जाकर थोड़ी देर बाद उसी दरवाजे से अंदर आने के लिए कहा तो उन्हें लगा कि वह उनकी कुछ अभिनय क्षमता देखना चाहते हैं। उन्होंने एक पूरी ड्रैमेटिक एंट्री मारी जिसमें दहलीज पर जानबूझकर ठोकर खाकर लड़खड़ाना भी शामिल था और एक काल्पनिक आदमी को लताड़ते हुए गरियाना भी। लेकिन अभी वह अंदर दाखिल ही हुए थे कि प्रोफेसर साहब ने कहा, रुक जाओ शाह, तुम इसके लिए सही नहीं हो... तब उन्हें लगा कि यहां की पढ़ाई एनएसडी से बिल्कुल अलग होगी। जहां रंगमंच पर असरदार ढंग से खड़ा होना, संवाद की रवानी, कॉस्ट्यूम का इस्तेमाल, आवाज दूर तक पहुंचाना जैसी चीजें जरूरी थी तो अब यहां यह सब अनदेखा कर चेहरे के हावभाव को पकड़ता था। यहां पहली बार मेथड एक्टिंग तकनीक से उनका परिचय हुआ। पहली बार यहां विदेशी फिल्में देखी तब लगा कि भारतीय फिल्में कितनी नकली हैं। इतावली, पोलिश, जर्मन, जापानी फिल्मों के लेखन और अभिनय में जीवन और सिनेमा की जो गहरी समझ नज़र आई वह भारत के सिनेमा में तो दूर-दूर तक नहीं है। एक साल बाद एनएसडी के अपने दोस्तों पर रोब जमाने के लिए दोनों दिल्ली आए तो ओमपुरी के पास ठहरे और उन्हें भी वहां आने को तैयार कर लिया। अगले वर्ष नसीर और जसपाल की अगुवाई में अभिनय के छात्रों ने भूख हड़ताल भी की। हड़ताल वहां की डिप्लोमा फिल्मों के लिए एफटीआईआई के छात्रों को तरजीह न देकर बाहर से अभिनेताओं को लेने के मुद्दे को लेकर हुई थी। उस समय गिरीश कर्नाड वहां के निदेशक थे और उन्होंने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने चालाकी से हड़ताल तुड़वा दी। इसके बाद जसपाल से उनकी दुश्मनी हुई जो बहुत घातक स्तर तक पहुंची।इस बीच गिरीश कर्नाड के कहने पर श्याम बेनेगल ने अपनी दूसरी फिल्म `निशांत' में उन्हें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका दे दी। फिल्म के लिए उन्हें 10,000 रुपयों की बड़ी राशि मिली और हैदराबाद में शूटिंग के लिए हवाई यात्रा का टिकट अलग से...और इस तरह एफटीआईआई से फिल्मों में पहुंचने का उनका वह सपना साकार हो गया जो उन्होंने तीन साल पहले दिल्ली के रीगल थियेटर में देखा था....
चलते चलते
अपने एफटीआईआई के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बेबाकी से लिखा है कि वे दोनों तब हमेशा गांजे के नशे में रहते थे। पहले साल क्लास में अव्वल रहने के कारण उन्हें अब अलग कमरा मिल गया था लेकिन फिर भी वे और जसपाल हमेशा साथ वक्त गुजारते और अक्सर खाने की जगह डेक्सेड्रिन की भारी खुराक लेकर रात भर जागते और फिर सोने के लिए मेंड्रेक्स की भारी खुराक लेकर अपनी सेहत को खतरे में डालते थे। एक दिन तो उन्होंने अपने मित्र अहमद मुनीर जो कि जू स्टोरी नाम का नाटक कर रहे थे, उसके कहने पर दिन में ही एलएसडी तक की खुराक ले ली थी जो बहुत महंगा और असुरक्षित नशा था। फिर तो हॉस्टल की छत पर बैठे-बैठे उन्हें सूरज से लेकर हरे पेड़-पौधों और दीवारों के रंग बदलते नजर आए ....
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश