'एक हैं, तो सुरक्षित हैं' के मर्म को समझा हिंदू समाज ने
डॉ. आर.के. सिन्हामहाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम पर सारे देश की निगाहें लगी हुई थीं। सारे देश को ही बेसब्री से इंतजार था कि क्या बीते लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद भाजपा का प्रदर्शन किस तरह का रहता है। दरअसल इसी साल में मात्र
डॉ. आर.के. सिन्हा


डॉ. आर.के. सिन्हामहाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम पर सारे देश की निगाहें लगी हुई थीं। सारे देश को ही बेसब्री से इंतजार था कि क्या बीते लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद भाजपा का प्रदर्शन किस तरह का रहता है। दरअसल इसी साल में मात्र पांच माह पूर्व संपन्न लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के कई प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में आश्चर्यजनक विफलता के बाद, भाजपा के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि वह राज्य में खोई हुई जमीन को किस तरह वापस हासिल कर ले। महाराष्ट्र में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के कारण भाजपा को लोकसभा चुनाव में कम से कम सात निर्वाचन क्षेत्रों में काफी नुकसान उठाना पड़ा था, जिसमें धुले और मुंबई उत्तर-पूर्व क्षेत्र भी शामिल हैं। इन दोनों जगहों में भाजपा का पहले से ही बहुत मजबूत आधार था। इन नतीजों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने एक अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य न केवल इन खोई हुई जमीनों को वापस पाना था, बल्कि अपनी छवि को फिर से परिभाषित करना भी था। प्रधानमंत्री ने इस चुनाव में एक नया नारा पेश किया, एक हैं तो सुरक्षित हैं। यह नारा विशेष रूप से हिंदू मतदाताओं को आकर्षित कर एकजुट करने के लिए बनाया गया था, जिसमें जातीय विभाजन के खिलाफ पूरे हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया गया था। बेशक, इस नारे ने महायुति गठबंधन को तगड़ा लाभ पहुंचाया। मोदी जी का नारा सिर्फ हिंदू मतदाताओं को एक करना भर ही नहीं था। इसे पूरे समाज ने राष्ट्रीय एकता के साथ जोड़कर भी देखा। महायुति गठबंधन में भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) शामिल हैं। इस आह्वान के परिणामस्वरूप हिन्दू वोटों का भाजपा और उसके सहयोगियों के पक्ष में मौन और अत्यंत ही प्रभावी एकीकरण हुआ। यह नारा विपक्ष द्वारा स्थापित कथानक का सीधा जवाब था। और, इसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक अन्य नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ से और भी शक्ति मिल गई। इन नारों का उद्देश्य उन क्षेत्रों में हिंदू मतदाताओं को आश्वस्त करना था, जहां उन्हें लगता था कि अल्पसंख्यक वोटों के एकीकरण के कारण उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो रहा है।मोदी और योगी के नारों से इसलिए भी हिंदू मतदाता जुड़े, क्योंकि कई मुस्लिम मौलवी लगातार यह अपील कर रहे थे कि मुस्लिम महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के उम्मीदवारों को ही वोट दे। इस्लामी प्रचारक मौलवी सज्जाद नोमानी विधानसभा चुनाव से पहले लगातार यह फतवे दे रहे थे कि मुसलमानों को तो भाजपा के खिलाफ ही वोट देना है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान सज्जाद नोमानी का एक वीडियो वायरल हुआ था। उसमें वह मुस्लिम समुदाय से कांग्रेस-सेना ( उद्धव)-एनसीपी (शरद पवार) गठबंधन को ही वोट देने की अपील करते हुए दिखाई दिए थे।सज्जाद नोमानी ने भाजपा का समर्थन करने वाले मुसलमानों के बहिष्कार का फतवा भी जारी किया था। नोमानी और उनके जैसे कुछ मजहबी और सियासी नेताओं की अपीलों और हरकतों के चलते ही उदारवादी हिंदू मतदाता भी लामबंद हुआ। पत्रकारिता छोड़कर सियासत में आए औरंगाबाद के पूर्व सांसद इम्तियाज जलील की पिछले महीने मुंबई में निकाली रैली ने भी हिंदुओं को सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। वे सैकड़ों कारों और दूसरे वाहनों के साथ मुंबई में आ गए थे। जलील को विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद पूर्व सीट पर भाजपा के अतुल सावे ने शिकस्त दी।दरअसल राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल और महाराष्ट्र और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य सज्जाद नोमानी सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के लिए कोटा की जोरदार तरीके से मांग कर रहे थे। इस कारण भी मोदी और योगी के नारों ने हिंदू मतदाताओं को बहुत सोचने के लिए मजबूर किया। महाराष्ट्र में जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ा, भाजपा की रणनीति विभाजन के कथित खतरों के खिलाफ सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता की रक्षा करने की कहानी में विकसित हुई। प्रधानमंत्री मोदी सहित महायुति के नेताओं ने रैलियों और बैठकों की एक शृंखला में भाग लिया, जिसमें एक साथ खड़े होने के महत्व पर जोर दिया गया। कहानी स्पष्ट थी-भाजपा के तहत एकता हिंदू समुदाय और विस्तार से राष्ट्र के लिए सुरक्षा और प्रगति का मार्ग है। मोदी और योगी के नारों को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने वार्षिक दशहरा संबोधन में समर्थन दिया। उन्होंने हिंदू एकता का आह्वान किया और बांग्लादेश में समुदाय पर हमलों से सबक लेने का आग्रह किया। वरिष्ठ संघ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले ने भी हिंदू एकता के आह्वान को बढ़ाते हुए बटेंगे तो कटेंगे नारे का इस्तेमाल किया।आपको याद होगा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 'बंटेंगे तो कटेंगे' के नारे ने हरियाणा चुनाव में भी अपना असर दिखाया था। मुंबई और ठाणे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो के साथ 'बंटेंगे तो कटेंगे' के संदेश वाले होर्डिंग्स देखे गए थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या योगी और उनका नारा हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी सफल हो पाएगा? महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का गहराई से विश्लेषण करने से साफ है कि उपर्युक्त नारे से प्रभावित होकर हिंदू मतदाता एक साथ तो आए। उन्होंने अपने को जाति से ऊपर पहले हिन्दू समाज और सनातनी परंपरा को माना। योगी ने महाराष्ट्र में दो दर्जन से अधिक सभाओं को संबोधित किया। अब जबकि महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजे आ चुके है, तब कहना पड़ेगा कि कांग्रेस और गांधी परिवार ने 'सत्ता की लालसा में' पंथनिरपेक्षता (सभी संप्रदायों के साथ समान व्यवहार) की भावना को तोड़ दिया है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों को मिली जीत तथा कई राज्यों में उपचुनाव में मिली बड़ी जीत को एकता तथा 'एक हैं तो सुरक्षित हैं' नारे के पीछे की भावना बताया । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के शुरू होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गढ़ा गया यह नारा जाति के आधार पर वोटों के बंटने के खिलाफ भाजपा के आह्वान को दर्शाता था। भाजपा के नेता हाल ही में हुए चुनाव में विपक्ष के लोकसभा चुनाव के समय किए मिथ्या प्रचार का जवाब देने में सफल रहे कि मोदी सरकार संविधान में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहती है। यह स्वीकार तो करना ही होगा कि भारत के उद्योग और वित्त संसार के गढ़ महाराष्ट्र के लोगों ने 'एक हैं तो सुरक्षित हैं' के पीछे की भावना को जोरदार तरीके से पुष्ट किया। इस नारे ने उन लोगों को हराया है जो समाज को जाति, धर्म, भाषा में बांटना चाहते थे और समाज को बांटने की कोशिश करने वालों को सजा दी है।(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद