अटल बिहारी वाजपेयी एक अजातशत्रु
मनोज कुमार मिश्र पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सही मायने में अजातशत्रु थे। उनसे जो कोई एक बार मिल लेता, उसे वे अपना बना लेते थे। आज अगर वे जीवित होते तो सौ साल के होते। 25 दिसंबर,1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी जी ने 16 अगस्त,2018 को दिल्
मनोज कुमार मिश्र


मनोज कुमार मिश्र

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सही मायने में अजातशत्रु थे। उनसे जो कोई एक बार मिल लेता, उसे वे अपना बना लेते थे। आज अगर वे जीवित होते तो सौ साल के होते। 25 दिसंबर,1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी जी ने 16 अगस्त,2018 को दिल्ली में अपनी अंतिम सांस ली। 93 साल के जीवन में वे 65 साल पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने अलग तरह की राजनीति की। दिल्ली ही नहीं देश के अनेक हिस्सों में सैकड़ों लोग ऐसे मिल जाएंगे जो अटल जी से जुड़े किस्से सुनाने लगेंगे। अपने निधन से सालों पहले वे बीमार होने के चलते राजनीति से दूर हो गए थे, बावजूद इसके उनके सरकारी आवास पर उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता था। यह जानकर लोगों को ताजुब्ब होगा कि प्रधानमंत्री रहते हुए उनसे जो नेता सबसे ज्यादा मिलने जाते थे, उनमें एक नाम उनके भारी राजनीतिक विरोधी भाकपा महासचिव इन्द्रजीत गुप्त का था। उनके मित्रों की सूची में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला का नाम प्रमुख था। देश में कांग्रेस की सरकार थी और देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए विपक्ष के नेता रहे अटल जी की अगुवाई में तब के विदेशमंत्री संयुक्त राष्ट्र गए थे। उन्हें देखकर पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के पसीने छूट गए थे।

1999 के लोकसभा चुनाव में अटल जी लखनऊ और गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ रहे थे। लखनऊ में उनके सामने समाजवादी पार्टी ने फिल्म अभिनेता राज बब्बर को चुनाव लड़वाया। एक व्यवसायी जो एक मीडिया घराना भी चलाते थे, अटल जी को हराने के लिए हर प्रयास कर रहे थे। चुनाव में अटल जी की भारी जीत हुई। वे प्रधानमंत्री बने। कोई और होता तो उस व्यवसायी को परेशान करता। प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल जी ने उनको समय देकर उनसे मुलाकात की। उसी मीडिया संस्थान के एक पत्रकार उनके साथ गांधीनगर गए हुए थे। गुजरात के तब के मुख्यमंत्री सुरेश मेहता ने अटल जी को खुश करने के लिए उस व्यवसायी के खिलाफ खिलाफ मुकदमा कायम करवाया था। अटल जी की चिंता उनके साथ गए उस मीडिया घराने के पत्रकार के नौकरी की थी। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी साथ गए दूसरे वरिष्ठ पत्रकार को दी। दिल्ली के अपने मित्र कांग्रेस नेता जग प्रवेश चन्द्र के अनुरोध पर उन्होंने एक विधायक की सदस्यता बचाई। अपनी विचारधारा के प्रति वे समर्पित थे। 1996 में उनकी सरकार केवल 13 दिन में चली गई। 27 मई,1996 को संसद में उन्होंने कहा कि सरकार बचाने के लिए वे विचारधारा से समझौता नहीं कर सकते। 1998 में वापस उनकी सरकार बनी जो 13 महीने चली और 1999 में बनी सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

उन्होंने 24 दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक सरकार चलाई और रिकार्ड काम किए। देश को चारों दिशाओं से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना बनी। 1998 में पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए गए। उससे खफा पाकिस्तान में कारगिल में हमला किया तो उसका मुंहतोड़ जबाब दिया गया। बावजूद इसके उन्होंने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की हर संभव प्रयास किया। दिल्ली से खुद प्रमुख नागरिकों के साथ बस से लाहौर की यात्रा की। उनकी कोशिश नवाज शरीफ का तख्तापलट होने और जनरल परवेज मुशर्रफ के अड़ियल रवैये से सफल नहीं हो पाई। पहले गैर कांग्रेसी नेता के रूप में उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री छह साल का कार्यकाल पूरा किया। वे कहा करते थे कि भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है-ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अटल जी की सोच को उन्नत तरीके से बढ़ाने में लगे हए हैं। अटल जी को देश के अनेक हिस्सों में सम्मानित किया जाता रहा। 1992 में उन्हें पद्म विभूषण और 2015 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

अटल जी न केवल लोकप्रिय नेता थे बल्कि कवि, लेखक पत्रकार भी थे। उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन पत्रकार के नाते शुरू किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ कर राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन में पत्रकारिता की। 1951 से ही जनसंघ के स्थापना काल से जुड़े। संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सहायक बने। फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सहयोगी बने। 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 1974 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ। 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी तो उसके अध्यक्ष बने। वे पहली बार 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से सांसद बने। 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। वे उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली से लोक सभा के सांसद रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे प्रभावित होकर कहा था कि एक दिन वे देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। उनके भाषण को सुनने के लिए देश के हर कोने में लोग देररात तक मीलों यात्रा करके आते थे। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान ने संसद में अटल जी के भाषणों का किस्से सुनाए थे। अटल जी को राजनीति की जमीनी समझ भी गजब की थी। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को चुनाव के लिए तैयार करवाने वालों में अटल जी प्रमुख थे। उन्होंने जय प्रकाश नारायण और संघ नेताओं को विश्वास में लेकर ओम मेहता से इंदिरा गांधी पर चुनाव करवाने के लिए दबाव डलवाया। उन्हें पता था कि वे हारेंगी लेकिन उनके समर्थकों ने उन्हें बेहद लोकप्रिय बताकर चुनाव करवाने के लिए उन्हें तैयार किया। इसके चलते देश की राजनीति बदली।

जनता पार्टी सरकार के विदेश मंत्री के नाते पहली बार अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया। वे कार्यकर्ताओं को खूब महत्व देते थे। हर रोज एक घंटा उनसे बिना पूर्व समय लिए कार्यकर्ता मिल सकते थे। किसी कार्यकर्ता के निजी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए हर समय तत्पर रहते थे। उनके प्रधानमंत्री रहते हुए विजय गोयल प्रधानमंत्री कार्यालय का मंत्री रहने के चलते उनके काफी करीबी रहे। वो कहते हैं कि अटल जी सही मायने में राष्ट्र पुरुष थे। लंबे समय तक सांसद , मंत्री और प्रधानमंत्री रहने के बावजूद वे आजीवन फक्कड़ रहे। शुरुआती दिनों के उनके साथी और लोकप्रिय कवि, गीतकार गोपाल दास नीरज ने एक बार संस्मरण सुनाया था कि वे अटल जी के साथ आगरा किसी कवि सम्मेलन में गए। रेलगाड़ी लेट होने से वे सम्मेलन स्थल पर तब पहुंचे, जब आयोजन समाप्त हो चुका था। उन्होंने नीरज को तांगे का किराया देने को कहा तो उन्होंने पैसा होने से इनकार कर दिया। फिर वे आगरा में रहने वाली अपनी बहन के घर गए और उनसे मांगकर तांगे का किराया दिया। वे आजीवन अविवाहित रहे। उन्होंने देश को अपना परिवार माना और खुद अपनी मुंहबोली बेटी के साथ जीवन का अंतिम समय बिताया। देश के विभिन्न हिस्सों और लाल किले पर दिए भाषणों के अंश आज भी अनेक लोग दुहराते मिल जाएंगे। उनकी कविताएं बेहद लोकप्रिय हैं। उन्हें देश और दुनिया में लंबे समय तक लोकतंत्र से जुड़े हर मामले में याद किया जाता रहेगा और उनका उदाहरण दिया जाता रहेगा।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के कार्यकारी संपादक हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद