अविश्वास प्रस्ताव के लिए राज्यसभा के सभापति जिम्मेदार: खरगे 
नई दिल्ली, 11 दिसंबर (हि.स.)। राज्यसभा के सभापति के खिलाफ इंडी गठबंधन (आईएनडीआईए) के अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष एवं सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि सभापति ने देश की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र के इत
नई दिल्लीः कांस्टीट्यूशन क्लब में राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर प्रेस कांफ्रेंस के दौरान राज्यसभा में  नेता विपक्ष  मल्लिकार्जुन खरगे एवं गठबंधन के अन्य नेता


नई दिल्ली, 11 दिसंबर (हि.स.)। राज्यसभा के सभापति के खिलाफ इंडी गठबंधन (आईएनडीआईए) के अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस अध्यक्ष एवं सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि सभापति ने देश की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि हमें अविश्वास प्रस्ताव के लिए यह नोटिस लाना पड़ा। हमारी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या राजनीतिक लड़ाई नहीं है। हम देशवासियों को बताना चाहते हैं कि हमने लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए बहुत सोच-समझकर यह कदम उठाया है।

कांस्टीट्यूशन क्लब में आज यहां आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस में खरगे ने कहा कि उपराष्ट्रपति का पद दूसरे नंबर का सबसे उच्च संवैधानिक पद है। इस पद पर महाविद्वान डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डा. शंकर दयाल शर्मा, जस्टिस हिदायत उल्ला और केआर नारायणन समेत कई महान लोग रह चुके हैं। 1952 से अब तक किसी उपराष्ट्रपति के खिलाफ संविधान के आर्टिकल 67 के तहत इस तरह का अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया, क्योंकि वो हमेशा निष्पक्ष और राजनीति से परे रहे। केवल सदन चलाना और वो भी जो सदन के नियम कानून हैं, उसके तहत सदन चलाते रहे। आज हमें कहना पड़ता है कि सदन में रूल्स को छोड़कर राजनीति ज्यादा हो रही है। उन्होंने कहा कि पहले उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के तत्कालीन सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 16 मई 1952 को सांसदों से कहा था कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं। इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से जुड़ा हूं।

खरगे ने कहा कि हमें अफसोस है कि संविधान लागू होने के 75वें साल में उपराष्ट्रपति के खिलाफ विपक्ष को यह अविश्वास प्रस्ताव लाने पर मजबूर किया गया है। पिछले तीन वर्षों में उनका (उपराष्ट्रपति का) आचरण पद की गरिमा के विपरीत रहा है। उन्होंने सभापति पर विपक्षी सदस्यों के साथ पक्षपातपूर्ण बर्ताव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सदन में कई प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर और पत्रकार आदि इस सदन में आए हैं, जिनका 40-50 साल का राजनीतिक अनुभव रहा है। सभापति उनको हेडमास्टर की तरह लेक्चर सुनाते हैं।

खरगे ने आरोप लगाया कि सदन में विपक्ष की ओर से नियमानुसार जो विषय उठाए जाते हैं, सभापति उन पर वह नियोजित तरीके से स्वस्थ संवाद नहीं होने देते हैं। सदन अगर बाधित होता है तो उसका सबके बड़ा कारण सभापति हैं। दूसरों को वह सबक सिखाते हैं लेकिन बार-बार बाधा पहुंचाकर हाउस को बंद करने की कोशिश करते हैं। सामान्य तौर पर विपक्ष आसन से संरक्षण मांगता है लेकिन सदन में इसे अनसुना कर दिया जाता है। सभापति के आचरण ने देश के संसदीय इतिहास में ऐसा वक्त ला दिया कि हमें यह नोटिस देना पड़ा है। देश के नागरिकों को हम विनम्रता से बताना चाहते हैं कि लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए यह कदम उठाया गया है।

इस मौके पर डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने कहा कि संसद में सत्ताधारी पार्टी द्वारा इस देश के लोकतंत्र पर एक ज़बरदस्त हमला किया जा रहा है और उन्हें सभापति द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है, यह बहुत दुखद बात है। देश में जो कुछ चल रहा है, हमें बोलने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं है। इसका मतलब यह है कि यह संसदीय लोकतंत्र और इस देश के लोकतंत्र पर एक आघात है।

राजद सांसद मनोज झा ने कहा कि यह किसी व्यक्ति के बारे में नहीं है बल्कि यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांत की बहाली के बारे में है। यदि आपने पिछले दो दिनों की कार्यवाही देखी है तो कुछ लोगों ने, जिनका हम सम्मान करते हैं, जिस भाषा का इस्तेमाल किया है - यह न केवल पीड़ादायक है बल्कि हम यह भी सोचते हैं कि अगर आने वाले दिनों में सत्ता परिवर्तन होता है, तो क्या हम लोकतंत्र की मरम्मत और बहाली कर पाएंगे?

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हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव