ब्रिक्स राइटर्स और जर्नलिस्ट फोरम ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर रामदरश मिश्र के लिए की पद्मश्री की मांग
नई दिल्ली, 11 दिसंबर (हि.स.)। ब्रिक्स राइटर्स और जर्नलिस्ट फोरम ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को पत्र लिखकर शती साहित्यकार रामदरश मिश्र के लिए पद्मश्री की मांग की है। मिश्र देश के एकमात्र जीवित साहित्यकार हैं, जिन्होंने शिक्षक, कवि, कथाकार, समीक्षक, ग
ब्रिक्स राइटर्स और जर्नलिस्ट फोरम ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर रामदरश मिश्र के लिए की पद्मश्री की मांग


नई दिल्ली, 11 दिसंबर (हि.स.)। ब्रिक्स राइटर्स और जर्नलिस्ट फोरम ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को पत्र लिखकर शती साहित्यकार रामदरश मिश्र के लिए पद्मश्री की मांग की है। मिश्र देश के एकमात्र जीवित साहित्यकार हैं, जिन्होंने शिक्षक, कवि, कथाकार, समीक्षक, गजलकार और निबंधकार के रूप में पिछले 75 वर्षों से अपनी कलम से साहित्य की निरंतर सेवा कर रहे हैं।

1924 में उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में जन्मे हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष प्रोफेसर रामदरश मिश्र की रचनाओं में उनकी ग्रामीण पृष्ठभूमि और परिवेश जीवंत हो उठते हैं। टेक्नोलॉजी के अभाव से टेक्नो युग तक उनकी रचनाशीलता अविरल बहती रही है।

ब्रिक्स राइटर्स और जर्नलिस्ट फोरम के अध्यक्ष अनिरुद्ध कुमार सुधांशु ने बुधवार को कहा कि रामदरश मिश्र न केवल रचनात्मकता के लिए बल्कि अपनी जीवटता के लिए भी भारत के लिए धरोहर हैं। उन्होंने अपनी रचना यात्रा कविता से शुरू की किंतु कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उनकी उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। छठे और सातवें दशक में मिश्र का प्रथम कविता संग्रह ‘पथ के गीत’(1951), प्रथम उपन्यास पानी के प्राचीर (1961) और पहला कहानी संग्रह ‘खाली घर’ (1968) प्रकाशित होते हैं। रामदरश मिश्र मूलतः अभिशप्त जीवन के पक्षधर लेखक हैं। इनके लेखन में नारी और दलित यातना के अनेक आयाम सहज रूप से मूर्त हुए हैं। ऐसे साहित्यकार को यदि पद्मश्री दिया जाता है तो सम्पूर्ण साहित्य जगत के साथ साथ उन साहित्यकारों को बल मिलेगा, जो बिना पैरोकार के सरोकारों से भरा साहित्य रच रहे हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार