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राम प्रताप मिश्र साकेती
नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर उत्तराखंड पर्यटकों, श्रद्धालुओं और तीर्थाटन करने वालों का पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत करता है। इस देवभूमि में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। चाहे धार्मिक पर्यटन हो, ऐतिहासिक पर्यटन हो, साहसिक पर्यटन हो या देवभूमि के विभिन्न स्थलों में आनंद उठाने का मौका। यहां की नदियां पूरे देश के पर्यटकों को राफ्टिंग जैसे साहसिक खेलों के लिए सदैव आमंत्रण देती हैं। मसूरी, नैनीताल जैसे पर्यटक स्थल जहां ग्रीष्म ऋतुएं लोगों को तपन से राहत देते हैं, वहीं पर्यटक शरद ऋतु में भी यहां आकर प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन कर अपने को धन्य पाते हैं। नैनीताल, चोपता, चकराता, कौसानी, औली जैसे अनेक सुरम्य स्थल हैं जहां शीतकाल में भारी बर्फबारी का आनंद लेने पर्यटक पहुंचते हैं। उत्तराखंड के चारधाम ग्रीष्म ऋतु में ही लोगों की आस्था का केंद्र बनते हैं। देशी-विदेशी लाखों लोग प्रतिवर्ष आस्था के इन केंद्रों पर उपस्थिति दर्ज कराते हैं। अब जब शरद ऋतु आ गई है तो देवभूमि के इन मंदिरों की पूजा उन चारधामों से हटकर मैदानी क्षेत्रों में होती है जो अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर है। ऐसे में जो लोग ग्रीष्म ऋतु में इन चारधामों के दर्शन नहीं कर पाए हैं वह शरद ऋतु में भी इन धामों के दर्शन कर सकते हैं।
शीतकाल में यात्रियों का चारधाम की ओर जाना कम हो जाएगा। वहीं, अब बाबा केदार की पंचमुख डोली ऊखीमठ पहुंचेगी जहां श्रद्धालुओं को दर्शन देगी। बद्री-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि इस यात्राकाल के दौरान 16 लाख से अधिक यात्री श्री केदारधाम के दर्शन को पहुंचे जो अपने आप में रिकार्ड हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्ष्यों के अनुरूप केदारपुरी का भव्य पुनर्निर्माण हो रहा है। इस सफल यात्रा का श्रेय अजेंद्र अजय ने बद्री-केदार मंदिर समिति के कार्मिकों, पुलिस प्रशासन तथा व्यवस्था से जुड़े विभागों को दिया है। यह अपने आप में ऐतिहासिक है। 16 लाख भक्तों का उत्तराखंड पहुंचना इस बात का प्रतीक है कि कहीं न कहीं चारधामों की व्यवस्था पहले से और अधिक मजबूत हुई है।
चार धामों के कपाट बंद होना सामान्य व्यवस्था है जो अनादिकाल से चली आ रही है। जगतगुरु शंकरचार्य द्वारा स्थापित इन धामों की व्यवस्था सदियों से ऐसे ही चलती आई है। इस व्यवस्था के बनाने के पीछे मौसम का बदलना भी है। अब ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी का दौर प्रारंभ हो जाएगा। इसीलिए यह व्यवस्था हिमालय के बदलते मौसम ओर मिजाज के चलते बनाई गई है। उत्तराखण्ड में स्थित सभी चार धामों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के अलावा देवभूमि में स्थित हेमकुंड साहिब, मद महेश्वर, वैकुंठ भैरवनाथ, डोडिताल की अन्नपूर्णा मंदिर, तुंगनाथ जी, त्रिजुगीनारायण, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ जी सहित अन्य जो भी आस्था के केंद्र हैं वह सबके सब समुद्रतल से अच्छी खासी ऊंचाई पर हैं। यह ऊंचाई 3000 मीटर और उससे अधिक ऊंची है। शीतकाल में बर्फबारी के चलते इन आस्था के स्थलों तक तक पहुंचना आम आदमी के वश में नहीं है। हां, वह लोग जो विलक्षण हैं, साधु हैं या मानवेत्तर हैं, वह इस समय भी उन क्षेत्रों में निवास करते हैं। इसलिए आस्था और धर्म के प्रति आस्था बनी रहे और तीर्थों की पूजा-अर्चना होती रहे।
माना जाता है कि इन दिनों मंदिरों की पूजा का काम देव ऋषि नारद का है। इन मंदिरों में दीया-बाती जलती रहे, आस्था की लौ कभी बुझे नहीं इसलिए इन धामों में अखण्ड दीप जलाए जाते हैं जो 6 महीने बाद कपाट खुलने पर भी जलते रहते हैं। बिना देखरेख इन धामों में दीपक की लौ जलती रहती है। यही कारण है कि नैसर्गिक सुंदरता से आच्छादित इस प्रदेश को देवभूमि नाम दिया गया है। विपरीत मौसम के चलते लोगों को इन तीर्थों के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। इसलिए आस्था के द्वार पर श्रद्धालुओं का आना-जाना वर्षभर बना रहता है तो इस आस्था और विश्वास के लिए दर्शनों की अलग से व्यवस्था बनाई गई है।
ऊंचाई वाले स्थानों के देवधामों के देवी-देवता शीतकालीन गद्दी पर आ जाते हैं और वहीं उनकी पूजा-अर्चना होती है। मां यमुना जी की भोग मूर्ति के दर्शन 6 महीनों तक खरसाली में किए जाते हैं। इसी प्रकार मां गंगाजी के दर्शन गंगोत्री के बजाय मुखवा के गंगा मंदिर में किए जाते हैं जहां मां गंगाजी विराजमान होती हैं। ठीक इसी तरह बाबा केदारनाथ जी के दर्शन ऊखीमठ के केदार मंदिर और भगवान बद्रीश बद्रीनाथ जी के दर्शन जोशीमठ में करने की व्यवस्था है। शंकराचार्य द्वारा बनाई गई व्यवस्था के अनुसार इन सभी चारधामों के दर्शन निरंतर होते हैं और कपाट कभी बंद नहीं होते हैं बल्कि दर्शनों की व्यवस्था ओर स्थान बदल दिए जाते हैं ताकि श्रद्धालु वर्षभर इन तीर्थों के दर्शन करने का लाभ लेते रहें। पूजा-अर्चना और दर्शनों की व्यवस्था ओर परंपरा में कोई अंतर नहीं है। भेद है तो सिर्फ स्थल ओर जगह बदलने का। ये व्यवस्था और परंपरा आज से नहीं अनादिकाल से बदस्तूर जारी है। भारतीय परंपरा और व्यवस्था के तहत मौसम के अनुसार इन मंदिरों का स्थान बदल जाता है लेकिन दर्शन की परंपरा निरंतर बनी रहती है। इसके पीछे जहां धार्मिक पर्यटन की निरंतरता है, वहीं इन चार धामों की विशिष्टता भी है। कई बार श्रद्धालु और पर्यटक शीतकालीन ऋतु का आनंद लेने और बर्फबारी देखने इन क्षेत्रों में पहुंचते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों का यही स्वरूप अनादिकाल से लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश